आषाढ़
आषाढ़ री हूँ बदली, मती लगा तूँ जीव !
कदि बरसी ने बाढ़ हूँ, कदी मिलूँ नी पीव !!
कारा पीरा वादरा, घणा रूप रो चाव !
वायरा री गलबहियाँ, पल पल करो बणाव !!
आज कळायण उमड़गी, बिन बरस्या नी जाय !
घणा दना रो चाव यो , पल पल वदतो जाय !!
सारा सरवर कदि भरे, छूटी जीवन आस !
जा मति कारी वादरी, हिवड़ो हुयो उदास !!
म्हे अडिका थाने घणा, दन बीते औ रात !
क्यों नी आया वादरा , आई रुत बरसात !! ,,...''तनु ''
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