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Thursday, June 22, 2017




आस बढ़ी उम्मीद जगी खुशियों के फूल खिल गए !
खोयी जीवन मरीचिका  अमिय के झरने मिल गए !!

 कैसी गरम बयार चली,   झड़ गए सब पीले पात !
 चुपके इन्ही दरख्तों पर,नन्हे से कोंपल खिल गए !!

 लहरें चाहतों की चली , कभी उठती कभी गिरती !
  चलते चलते चूर नहीं ,  जैसे किनारे मिल गए !! 

 रिश्ते  थे तार तार  से  ,  पैबंद थे गरीबी के !
 उसकी निगाहों का करम था इनायत से सिल गए !! 

 क्यों जल गए थे बाग़ कहीं ना थी फूल भर खुशबू !
अज़ल से चले है हम, दम से हमारे गुल खिल गए !!,... ''तनु''






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