आस बढ़ी उम्मीद जगी खुशियों के फूल खिल गए !
खोयी जीवन मरीचिका अमिय के झरने मिल गए !!
कैसी गरम बयार चली, झड़ गए सब पीले पात !
चुपके इन्ही दरख्तों पर,नन्हे से कोंपल खिल गए !!
लहरें चाहतों की चली , कभी उठती कभी गिरती !
चलते चलते चूर नहीं , जैसे किनारे मिल गए !!
रिश्ते थे तार तार से , पैबंद थे गरीबी के !
उसकी निगाहों का करम था इनायत से सिल गए !!
क्यों जल गए थे बाग़ कहीं ना थी फूल भर खुशबू !
अज़ल से चले है हम, दम से हमारे गुल खिल गए !!,... ''तनु''
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