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Sunday, February 11, 2018

मन बहेलिया बाज सा


मन आँगन ऋतुराज है,  जागे हैं उद्गार !
कलम भाव ऐसे झरैं ,     जैसे हो कचनार !!

मन बहेलिया बाज सा ,नहीं मानता हार !
आखर पाखी बींधता,  बार बार हर बार !!

आखर के पाखी उड़े,  रचा राग संसार ! 
वासंती बयार कहे,      मनवा के उद्गार !! 

आँगन में ऋतुराज के, खिला खिला संसार !
भाव लेखनी यों झरै ,  जैसे हो कचनार !!.... ''तनु ''

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