मन आँगन ऋतुराज है, जागे हैं उद्गार !
कलम भाव ऐसे झरैं , जैसे हो कचनार !!
आखर पाखी बींधता, बार बार हर बार !!
आखर के पाखी उड़े, रचा राग संसार !
वासंती बयार कहे, मनवा के उद्गार !!
आँगन में ऋतुराज के, खिला खिला संसार !
भाव लेखनी यों झरै , जैसे हो कचनार !!.... ''तनु ''
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