छा रही मेरे चेहरे पे गहरी उदासी है !
हरसमय सीमा पर तना-तनी खासी है !!
कुछ देर चलो हम तुम लिपट कर रो लें !
आ गया है ऋतुराज पर रुत रुआँसी है !!
जो दर रोज़ होता है तो नया क्या हुआ है !
अब तो ताज़ी खबर भी लग रही बासी है !!
सियासत के दावपेंच और सिकती रोटियाँ !
सियासत के दावपेंच और सिकती रोटियाँ !
भरती न पेट, जो खुद खून की पियासी है !!
इक सबक लिए ठोकरें नई क्यों खायें हम !
चाय गिरी सच में मक्खी , नहीं आभासी है !!
हर दिन ''तनु'' माँ के लाल शहीद होने लगे !
चाय गिरी सच में मक्खी , नहीं आभासी है !!
हर दिन ''तनु'' माँ के लाल शहीद होने लगे !
घोंपते पीठ में छुरा क्या ये बात जरा सी है !!... 'तनु'
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