अँखियन बातें कह गया, ले फागुन का रंग !
रोम रोम महका गया, कुछ पल पी का संग !!
चुपके बहती फगुनिया, तीखी हो या मंद !
रोक रही है राह को, डाल रही है फंद !!
मन का टेसू खिल उठा, है तन रंग गुलाल !
गुलमोहर है सपन में , झूमी महुआ ड़ाल !!
ऋतुराज भी अनूप हैं, कस्तूरी सी साँस !
आज महोत्सव प्रीत का मनवा में उल्लास !!
कौन मनवा बंधन में, सब हैं बेपरवाह !
गालों पर सबके मिली, खिली कलियाँ अथाह !!... ''तनु''
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