बसंत हूँ मन भरा नहीं हूँ !
हरियाया पर हरा नहीं हूँ !!
मेरे मन का आँगन सूना !
पारिजात पर झरा नहीं हूँ !!
कसौटियाँ ही कसौटियाँ हैं
सोना फिर भी खरा नहीं हूँ !!
कभी सजाया कितना सँवरा
मयंक सा पर करा नहीं हूँ !!
कभी अनहद नाद सुनता हूँ !
अपरा हूँ मैं परा नहीं हूँ !!
दर्द सभी का सुन कर रोता !
विगलित हूँ पर गरा नहीं हूँ !!
मुझ में सबके प्राण समाये !
पोषण दूँ पर धरा नहीं हूँ !!
शायद सबकी अभिलाषा हूँ !
ज़िंदा हूँ मैं मरा नहीं हूँ !!
''तनु'' क्षण क्षय है क्षरित रहा है !
नश्वर सभी अक्षरा नहीं हूँ !! ... ''तनु''
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