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Thursday, February 8, 2018

काँटे संग पुहुप खिले


  काँटे संग पुहुप खिले , जाने संत महंत !
पतझर को ठुकराय के , पाओगे न बसंत !!

 संदेशन  ऋतुराज का , करे कोकिला गान !
 फिर बसंत लो छा गया, निज पर कर अभिमान !!

डाल बिखरी सुगंध है ,  पिक ने छेड़ा राग !
गुन गुन भौंरे गा रहे ,   पंकज खिले तड़ाग !! ... ''तनु''

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