काँटे संग पुहुप खिले , जाने संत महंत !
पतझर को ठुकराय के , पाओगे न बसंत !!
संदेशन ऋतुराज का , करे कोकिला गान !
फिर बसंत लो छा गया, निज पर कर अभिमान !!
डाल बिखरी सुगंध है , पिक ने छेड़ा राग !
गुन गुन भौंरे गा रहे , पंकज खिले तड़ाग !! ... ''तनु''
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