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Wednesday, May 19, 2021

उजड़ती जा रही बगिया आज किसी की

 

उजड़ती जा रही बगिया आज किसी की;
सुनता न कोई सदा नासाज किसी की!

फूटते है बुलबुले,  साथ आवाज़ के;
टूटती साँस क्यों बे-आवाज़ किसी की!

शोर नदी में डूब गयी साँस की गर्मी; 
नैया डूबती बिना पतवार किसी की!

बेक़ाबू मन 
था आँखें गगन पर लगी;
उड़ने को पर फैला परवाज़ किसी की!

नाले दर्द ग़म के किससे करें फरियाद;
रोटी न पानी, राह अनजान किसी की!

पेट की खातिर, डाल, यहाँ वहाँ डेरा;
आई न अब तलक सुखमय रात किसी की!

कौन करता तहस नहस 
जीव जीवन को;
भुगतते हैं ''तनु'' सभी अगलात किसी की!....... ''तनु''
 

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