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Tuesday, May 25, 2021

गाँव शहर वही है लेकिन अब डर से डर लगता है

गाँव शहर वही है लेकिन अब डर से डर लगता है;
मुहल्ले अनजान जन वीरान नगर से डर लगता है!

आस डरी, हर आह डरी, नज़र डरी, परवाह डरी डरी;
हीं प्यार हो बेशुमार, मिलती क़दर से डर लगता है!

आँगन की चिड़िया 
डरी, सभी सूखे दरख़्त काले हुए;
सन्नाटा ही बोल रहा, ठूँठ हुए शजर से डर लगता है!

इमां का साँचा छोड़कर वो ना जाने किस साँचे ढला;
झन्नाटे से आये सर फोड़ते  पत्थर से डर लगता है!

खुशियों की बस्तियों में सुहानी बरसात का मौसम 
हीं;
चह-चह, गुन-गुन ना भाये सुहाने मंज़र से डर लगता है!

ज़ह्र का प्याला रौशन-रौशन, पाप का बढ़ता संसार;
नेमत-ए-जीस्त भूल गया, हर बुत, पैकर से डर लगता है!

मंदिर-मस्जिद बंद हुए वो मूरत से बाहर निकला है;
सुकून की नींद खो गयी ''तनु'' बिस्तर से डर लगता है!...... ''तनु''



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