Labels

Friday, May 21, 2021

कोई तो शख़्स देखता बहार देर तलक

 

देखता कोई शख़्स तो बहार देर तलक ;
कैफ़ियत वो सुरूर वो ख़ुमार देर तलक!

काटने पत्थर, पानी की धार बहुत थी;
करते रहे  छेनियों की धार देर तलक!

ये मेला अपना सजाए चले चला हूँ;
राह में गुनगुनाया हूँ आज देर तलक!

नींद की शाखों पर फूले सपन फूल हैं;
ओस नहाया हुआ गुलज़ार देर तलक !

फिर इब्तिदा-ओ-इन्तिहा क्यों सोचते रहे; 
तवील सी बातों का इख़तिसार देर तलक!

उठ कर भागते रहना मेरी तासीर है;
दर्द से छटपटाया हूँ  रात देर तलक!

लिक्खूँगा जज़्बात बे -आसरा नहीं हूँ ;
''तनु''बुत कोई होगा हम- कलाम देर तलक!...... ''तनु''

No comments:

Post a Comment