देखता कोई शख़्स तो बहार देर तलक ;
कैफ़ियत वो सुरूर वो ख़ुमार देर तलक!
कैफ़ियत वो सुरूर वो ख़ुमार देर तलक!
काटने पत्थर, पानी की धार बहुत थी;
करते रहे छेनियों की धार देर तलक!
ये मेला अपना सजाए चले चला हूँ;
राह में गुनगुनाया हूँ आज देर तलक!
नींद की शाखों पर फूले सपन फूल हैं;
ओस नहाया हुआ गुलज़ार देर तलक !
फिर इब्तिदा-ओ-इन्तिहा क्यों सोचते रहे;
तवील सी बातों का इख़तिसार देर तलक!
उठ कर भागते रहना मेरी तासीर है;
दर्द से छटपटाया हूँ रात देर तलक!
लिक्खूँगा जज़्बात बे -आसरा नहीं हूँ ;
''तनु''बुत कोई होगा हम- कलाम देर तलक!...... ''तनु''
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