कर चुके हम आप से,पूरी मुकम्मल चाँदनी;
चाँद जैसी कर न पाए, चाँदनी सी चाँदनी!
अमावस की रात प्यासी, तिश्नगी बुझती नही;
चाँद भले चाहे मगर, हँसती नहीं है चाँदनी!
होती गयी सोहनी ग़ज़ल जागती तक़दीर भी;
अब वफ़ा के रंग भरती, आशिकी में चाँदनी!
हो गई नीलाम हसरत, हुस्न के बाजार में;
इक घड़ी सबको हँसाकर फिर रुलाती चाँदनी!
चढ़ गए सब ज्वार भाटे, जब नज़र चाँद की ;
हर समंदर की भँवर को, आजमाती चाँदनी!
इक परिंदा प्यार लेकर प्यार देता ही गया;
बे-वजह आस लेकर दिल लगाती चाँदनी!
है मुहब्बत की डगर, बेहद कठिन क्या कीजिये;
फिर मुहब्बत के महल, आबाद करती, चाँदनी!.....''तनु''
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