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Wednesday, May 12, 2021

आदमी क्या है, पड़ा है फैकने को

आदमी क्या है, पड़ा है फैकने को;
और क्या है जो बचा है देखने को!

साँस साँस उलझ गयी कच्ची है डोरी;
आज जीवन ही सजा है झेलने को!

ज़ुल्फ़ की चाहत लिए सपन देखता है;
खोजता है सुरमई काले घने को!

पाप पुण्यों का बहीखाता लिए चला;
चर्च, मस्जिद, मंदिर मत्था टेकने को! 

नाइब करे नाउम्मीद, नहीं ठिकाना;
आदमी है गन्ना पड़ा है पेलने को !

साथ सूरज के चला नहीं 
साँच भूला;
आँच थोड़ी ''तनु'' बचा ले सेंकने को !..... ''तनु''


 

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