आदमी क्या है, पड़ा है फैकने को;
और क्या है जो बचा है देखने को!
और क्या है जो बचा है देखने को!
साँस साँस उलझ गयी कच्ची है डोरी;
आज जीवन ही सजा है झेलने को!
ज़ुल्फ़ की चाहत लिए सपन देखता है;
खोजता है सुरमई काले घने को!
पाप पुण्यों का बहीखाता लिए चला;
चर्च, मस्जिद, मंदिर मत्था टेकने को!
नाइब करे नाउम्मीद, नहीं ठिकाना;
आदमी है गन्ना पड़ा है पेलने को !
साथ सूरज के चला नहीं साँच भूला;
आँच थोड़ी ''तनु'' बचा ले सेंकने को !..... ''तनु''
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