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Monday, November 24, 2014

मेरे मन की मोरनी, मन ही मन अकुलाय !
छाई बदरी सावनी, बरस !!! बरस ना आय !!…''तनु ''

दोहा प्रकार :- चौदह गुरु बीस लघु ''हंस'' रूप दोहा 
मैं वही  हूँ जो,
बहारों की,
किताब लिखती हूँ !!
तन्हाई की रातो में,
सितारे नायाब लिखती हूँ!!!

अभिशप्त है जो
कोख से,
विज्ञान की जन्मा
खैरात दे ,
बना निकम्मा !
आधुनिकता का
जामा पहन ,
विकास की
प्रक्रिया लिखती हूँ !!
मैं वही हूँ जो 
बहारों की,
किताब लिखती हूँ !!!

 सांसे घुटती है,
 दिल रोने को आता ,
 होती है 
आँखों में जलन,
जी चाहता है ,
दो घूँट पय 
 उन परिंदों … 
 उस गुलाब को दूँ 
 जो पयोद लाये ,
 हरित धरा,
 पहनाए वो 
 लिबास लिखती हूँ !!
 मैं वही  हूँ जो
 बहारों की
 किताब लिखती हूँ !!!

क्या गौरैया नहीं,
बिरहिन ही गाएगी 
क्या खून खार … 
धुएँ से
धरा पट जायेगी ?
आर्तनाद क्रंदन
अपशिष्ट ,
उत्सर्जन, 
विखंडित सूर्य !!!
धुआँ धुआँ ,
महताब लिखती हूँ !!
 मैं वही  हूँ जो
 बहारों की
 किताब लिखती हूँ!!!''तनु ''

















Sunday, November 23, 2014

सोलर सिस्टम में,
शुक्र मंगल में,
होती ऐसी गैसें परफेक्ट !!
मौसम में,
बदलाव हैं लाती,
होता ग्रीन हाउस इफेक्ट !!
धरती कहती,
पहले मुझे बचाओ ,
तो मैं तुमको बचा पाऊँगी !!
श्रृंखला टूटी,
जन जल न बचे,
जीवन पर होते साइड इफेक्ट !!.... ''तनु ''
पाँच तत्व की काया और पाँच तत्व हैं ख़ास,
वारि जग जंगल जले ---उठ उठ रही है बास !!
पर्यावरण छतरी टूटी ग्लोबल गर्मी फूट रही,
वसुंधरा अपनी माता,  बोलो कैसे लेगी साँस !!''तनु ''

धरती थार की ,
अँसुवन की धार सी.
मोह छोड़ मोह बाँध
आँचल समेट नन्हे को 
खुद से ही बतियाती 
जान गई वो हैं नहीं,
 किसे बतलाऊँ 
मन के आवेश की  ''तनु ''

Saturday, November 22, 2014


तिल ही तो बोये थे !! हुए ताड़ कैसे कैसे ??
दिल ही तोड़ने के हुए, जुगाड़ कैसे कैसे ??
भाव विहीन चेहरे हैं कोशिशें है नाकाम ,
बुत के लिए काटे गए पहाड़ कैसे कैसे ??''तनु ''

Friday, November 21, 2014

उठे गुनगुनी सुबह में, खिल खिल करते फूल
अंशुमान का साथ है ,  दिल दिल खिलते फूल

तिल का  ,
तेल होता है !
ताड़ नहीं होता !
सब तिल ,
हैं यहां कातिल !
पर कोई,
ताड़ नहीं होता !!
तिल का तेल,
न बन पाता !
जब तक कोई,
जुगाड़ नहीं होता !!
 झाँको चिलमन
 से ही,
 सुन्दर लगती हो !
चाँद सबको दीखता,
उसको कोई ,
आड़ नहीं होता !!
दिल को मिल ,
जाता जब, तिल गहरा !
जीवन से उसको ,
कोई लाड नहीं होता !!
तिल से मज़बूत,
दधिची, बाकी
उलीची!!! 
बात न करें, 
क्योंकि 
तिलों में, 
तेल नहीं ,
हाड नहीं होता !!
तिल ही तिल 
को खा जाता,
आजमाना ना,  
बाड ही खेत को,
चर जाती,
दूसरा  कोई 
बाड नहीं होता!!
मधुर श्रृंगार !
 होगा कैसे ?
सुनना सहज,
 गाना कठिन !
ये राग मांड है,
माड नहीं होता !!
कभी तो !
मिल कर चल लो ''तनु''  
कौन कहता है!!!
बिना चने के भाड़ नहीं होता ''तनु ''
मेरा काव्य सांद्र और, आप संतृप्त घोल !!
मेरे ये नन्हे मुक्तक आपके तो तोल बोल !

खुश होकर  नसीब पर मैं अपने वारि जाऊँ ,
जितने भी मिले हैं  भाई सारे हैं अनमोल !!
लेखनी लड़ने के लिए नहीं होती है,
न  लेखनी लड़ाने के लिए होती है!
ये साहित्यकार का हथियार है,
ये  फूल खिलाने के लिए होती है!!


लेखनी तोड़ने के लिए नहीं होती है ,
लेखनी जुड़ने के लिए होती है !
कलम को आशीष है माँ शारदे का ,
ये मन मिलाने के लिए होती है !!''तनु ''

Tuesday, November 18, 2014

ये अलसाई सी धरा है सोई,
 अपने मदिर नयनों को मूँद!!
 पवन का झौंका लहर दे गया,
  चुरा ले गया ओस की बूँद !!……''तनु ''

Monday, November 17, 2014

नवगीत 

नवगीत :--- काव्य धारा की नयी विधा ''नवगीत'' …इस काव्य धारा के प्रेरक सूरदास, तुलसीदास, मीरा बाई और भारतीय परम्परा में निहित लोकगीतों  की है ,…हिन्दी में महादेवी वर्मा ,निराला ,बच्चन सुमन,गोपाल सिंह नेपाली आदि ने बहुत सुन्दर गीत लिखे हैं ,… नवगीत लिखे जाने की परम्परा की धारा भले ही कम बही हो पर रुकी नहीं इन नवगीतों की शुरुआत आज़ादी के बाद से ही नयी कविता के दौर से ही समानांतर चलती रही। 

अब हम  समझें कि ये गीत और नवगीत का अंतर क्या है  ??? .......... 

तो पहला अंतर ये कि छायावादी गीत आज का नवगीत नहीं माना जाएगा क्योंकि काल का अंतर है ,… 
निराला के कई गीत नवगीत हैं ,…… परन्तु दूसरा अंतर जो कि आज के नवगीत और उनके नवगीतों का है वो रूपाकार का अंतर है क्योकि कथ्य के अनुरूप नवगीत का रूपाकार बदल सकता है  और इस  बदलने में लय  एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जबकि गीत छंदमय होते थे ,…तीसरा अंतर है कथ्य और उसकी भाषा ,क्योकि नवगीत समय की सापेक्षता को स्वीकारता है. अहा!!! कितनी अच्छी बात सोची मैंने ''गीत व्यक्ति है और नवगीत समष्टि है ''…… छंद को गढ़ना और उसे गेय बनाना गीत के लिए ज्यादह महत्त्व पूर्णहै। 

अब हम ये समझें कि वास्तव में नवगीत क्या है ? 

१. :---नवगीत में एक मुखड़ा और दो या तीन अंतरे होना चाहिए।
२. :---अंतरे की आखिरी पंक्ति मुखड़े की अंतिम  पंक्ति के सामान हो यानि तुकांत हो जिससे अंतरे  के बाद मुखड़े की पंक्ति को दोहराया जा सके। 
३, :---- वैसे तो नवगीत में छंद से सम्बंधित कोई विशेष नियम नहीं है पर ध्यान रहे कि मात्राएँ संतुलित रहें। जिससे लय  और गेयता बनी रहे। 

नवगीत में मात्राओं की गिनती कैसे करें ?

आइये समझें ,……… 

ये मैं आपको समझा चुकी हूँ कि मात्राओं की गणना कैसे करें। नवगीत में मात्राओं की गिनती करना सरल है
आइये समझें,………

ह्रस्व स्वर १ मात्रा जैसे अ,इ ,उ ,ऋ 
दीर्घ स्वर २ मात्रा जैसे आ , ई , ऊ, ए, ऐ , ओ , औ 

ध्यान दीजिये …व्यंजन यदि स्वर से जुड़ा है तो उसकी अलग कोई मात्रा नहीं गिनी जाती लेकिन यदि दो स्वरों के बीच दो व्यंजन आते हैं तो व्यंजन की भी एक मात्रा गिनी जाती है जैसे कल = २ मात्रा,....  कल्प = ३ मात्रा इसी प्रकार धन्य मन्त्र शिल्प ये सभी ३ मात्राओं वाले होंगे। 

समझें ,....... ध्यान  दीजिए यदि दो व्यंजन सबसे पहले आकर स्वर से मिलते हैं तो स्वर की ही मात्रा गिनी जायेगी जैसे त्रिधूल   त्रि = १,   धू  = २, ल = १,     क्षमा =३ , क्षम्य = ३, क्षत्राणी = ५   शत्रु =३ ,  न्यून =३ ,  चंचल =४ , … कौआ =४ ,… सादा = ४ ,....।  

नवगीत कैसे लिखें ?
नवगीत लिखते समय इन बातों का ध्यान रखें। 
आइये समझें ,.......... 
१.    - संस्कृति व  लोकतत्व का समावेश हो। 
२.   - तुकांत की जगह लयात्मकता को देखें। 
३.----नए प्रतीकों का समावेश हो नए बिम्ब धारण करें 
४.---- वैज्ञानिक दृष्टिकोंण  रखें। 
५.-----प्रस्तुतीकरण का ढंग प्रभावशाली हो नयापन लिए हो. 
६  ----अध्ययन जारी रखें क्योंकि शब्द भण्डार जितना अधिक नवगीत उतना अच्छा। 
७. ---- छंद मुक्त है लेकिन नवगीत  की पायल बजती रहे लय में। 
८.  ----सकारात्मक सोच हो। 
९. ----प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण करें। 
१०. -  संस्कृति में, लोकतत्व में, प्रकृति में स्वयं को समाहित करें तो लिखना सहज हो जाएगा। 

विनय सहित 















पाठ -9

मित्रों नमन !!!

पिछले पाठ में हमने जाना छंद तीन प्रकार के होते हैं
मात्रिक, वर्णिक एवं  अर्ध मात्रिक छंद
हम पिछले पाठ में मात्रिक छंदों के बारे में जान चुके हैं आज हम उससे आगे जानेंगे

मात्रिक छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या तो सामान रहती है परन्तु लघु - गुरु के क्रम पर ध्यान नहीं दिया जाता है। 

प्रमुख मात्रिक  छंद

सम मात्रिक छंद ;

अहीर ११ मात्रा ,………तोमर १२ ,मात्रा ,.... मानव १४ मात्रा ,…… अरिल्ल ,पद्धरि / पद्धटिका चौपाई १६ मात्रा,……पीयूषवर्ष, सुमेरु १९ मात्रा,…राधिका ,२२ मात्रा .............रोला ,दिक्पाल, रूपमाला २४ मात्रा ,............. गीतिका, २६ मात्रा,....... सरसी, २७ मात्रा  ...सार ,२८ मात्रा,……हरिगीतिका ,२८ मात्रा,…तांटक ,३० मात्रा ,…… वीर या आल्हा ,३१ मात्रा ,… . 

अर्द्धसम मात्रिक छंद :-

 बरवै ,  विषम चरण में १२ सम चरण में ७ मात्रा,……दोहा, विषम में १३ सम में  ११ मात्रा ,…सोरठा, विषम में ११ सम में १३ मात्रा (दोहा का उल्टा ),………उल्लाला, विषम १५ सम १३ मात्रा,……  

विषम मात्रिक छंद ;-कुण्डलिया( दोहा + रोला)……… छप्पय (रोला +उल्लाला )

२-  वर्णिक छंद:- 

 ऐसे छंद जिनमें सभी चरणों में वर्णों की मात्रा  समान होती है वर्णिक छंद कहलाते हैं उदहारण के लिए

प्रमुख वर्णिक छंद के बारे में जान लेते हैं - प्रमाणिका ८ वर्ण ,…स्वागता, भुजंगी ,शालिनी ,इन्द्रवज्रा ,दोधक ,११  वर्ण ……वंशस्थ ,भुजङ्गप्रयाग ,द्रुतविलम्बित ,तोटक ,१२ वर्ण ……  वसन्ततिलका,१४ वर्ण ……………मालिनी ,१५ वर्ण ………पंचचामर, चंचला,१६ वर्ण .......... मन्दाक्रान्ता शिखरिणी १७ वर्ण ,………शार्दूल विक्रीड़ित १९ वर्ण ,……स्त्रग्धऱा २१ वर्ण ,....... सवैया २२ से २६ वर्ण ,....... घनाक्षरी ३१ वर्ण, ............. रूप घनाक्षरी ३२, वर्ण ……  देव घनाक्षरी ३३ वर्ण ,.... कवित्त ३१ वर्ण ,.......  मनहरण ३३ वर्ण।  


मुक्त छंद :-

 जिस छंद में वर्णिक या मात्रिक प्रतिबन्ध न हो ,  न प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या और क्रम सामान हो और न मात्राओं की कोई निश्चित व्यवस्था हो , तथा जिसमें नाद और ताल के आधार पर पंक्तियों में  लाकर उन्हें गतिशील करने का आग्रह हो वह मुक्त छंद कहलाता है,…  इन रचनाओं में राग और श्रुति माधुर्य के स्थान पर प्रवाह और कथ्य पर विशेष ध्यान दिया जाता है शब्द चातुर्य अनुभूति गहनता और संवेदना का विस्तार इसमें छन्दस कविता की ही भाँति  होता है। .... 

उदाहरण .... 
वह तोड़ती पत्थर
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर वह तोड़ती पत्थर
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकर
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
नत नयन, प्रिय–कर्म–रत–मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार–बार प्रहार –
सामने तरू–मालिक अट्टालिका आकार।
चढ़ रही थी धूप
गर्मियों के दिन,
दिवा का तमतमाता रूप
उठी झुलसाती हुई लू,
रूई ज्यों जलती हुई भू,
गर्द चिनगी छा गई
प्रायः हुई दोपहर –
वह तोड़ती पत्थर। ''निराला''

विनय सहित 

Saturday, November 15, 2014

ताब  ए आफताब  नायाब है !  
कामयाब वही ,,जो बा याब है!! 
जिंदगी फ़ानी  वो  ला फ़ानी !
ना निगाह मिला तू  बे आब है !! ''तनु ''
 चढ़ गये फूल अकीदत के उर्स ए फ़ज़ली में,
 मालिक मेरे चंद बूँदे भर उस एक बदली में।     ''तनु''

नायाब  / अनमोल 


माना जीत बहारों की, ये चमन बना अनमोल !
शब्द भावना  में जड़े ये काव्य बना अनमोल  !!
सैंकड़ों रचनाएँ एक तिल की खातिर रच गयीं ,
सूरत ! सीरत भूल गयी,  ये दाग बना अनमोल !

हूँ लाया क्या ? कुछ भी तो नायाब नहीं ! 

नाकारा !!!  कहीं भी  तो कामयाब नहीं  !! 
न करो तुलना  होगा क्या  हासिल हमें !
नेकी दिल में उसके??  वो पायाब नहीं !! 

दर्पण यहाँ अनमोल है , पर धड़कता क्यों नहीं ?

सूरज सा चमकीला है पर धधकता क्यों नहीं ??  
अभी  गर्द  औ  गुबार पड़ी आँखों पर उसकी  , 
आई घडी नायाब है    पर फड़कता क्यों नहीं ?


बिन  विमोचन पुस्तकें रच गए अनमोल हैं !  

सीख अनोखी उनकी,  मधुर जिनके बोल हैं !!
सीप में मोती सी ,      कौमुदी बनीज्ञान की ! 
संस्कार ले समाज का ,  निभता हर कौल है !!


आब की नायाब थी  बूँद वो चम - चम चमकती ! 
ताब थी आब थी पात पर वो दम - दम  दमकती !!
आई हिलोर पवन की तो लगी डोलने यूँ  ,,,,,,,,
झूलना  झूलती पात पर वो गम - गम गमकती !


















                                            



Friday, November 14, 2014

बाल दिवस विशेष हैं !
कामनाएँ अशेष है !!
बच कर ही रहना सब,
बच्चा बनना शेष है...''तनु ''

Thursday, November 13, 2014

मित्रों नमन !!!

पाठ - ८ 
कविता रचने की आधारभूत जानकारी के बाद हम फिर अपने उस पाठ पर आते हैं जहाँ से शुरुआत की थी यानि छंद के बारे में  ………………:)

प्रत्येक पंक्ति पद कहलाती है विश्राम के आधार पर चरण का निर्माण होता है.… विश्राम नहीं चरण नहीं। चरणों के बारे में हम पिछले पाठ में समझ चुके हैं.............. 


दो पंक्ति द्विपदी कहलाती है। 
चार पंक्ति को चतुष्पदी कहते हैं। 

ये मेरा दुस्साहस ही कहें  कि  मैं इस विषय पर विवेचना लिए आप के साथ हूँ क्योंकि छंद  समूह में अभी तक ऐसा कोई लेख प्राप्त नहीं है जिस में छंद के मूलभूत तत्वों पर चर्चा हुई हो मुझसे अगर कोई भूल हो जाए तो आप सभी मेरा मार्गदशन करें। 

छंद क्या हैं ?  छंद कविता है पद्य है जो गणना में बंधा है। भाषा शब्द वर्ण और स्वर मिलकर एक निश्चित विधान में सुव्यस्थित होकर छंद बनाते हैं। इस प्रकार छंद की परिभाषा …… 
ये हुई................... 

''सामान्यतः वर्णों और मात्राओं की गेयव्यवस्था को छंद कहा जाता है'' ....

छंद  तीन प्रकार के  होते हैं  
आइये समझें…………… 

१ -  वार्णिक छंद   -   ऐसे छंद जिनकी रचना वर्णों की गणना नियमानुसार होती है उन्हें ''वार्णिक छंद ''कहते हैं। 

२ - मात्रिक छंद  - जिन छंदों के चारों चरणों की रचना मात्राओं की गणना के अनुसार की जाती है उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं। 


३ - अतुकांत और छंद मुक्त  -ऐसे छंद जिनकी रचना में वर्णों और मात्राओं की संख्या का कोई नियम नहीं होता उन्हें छंद मुक्त काव्य कहते हैं ये तुकांत भी हो सकते हैं और अतुकांत भी। 

प्रमुख मात्रिक छन्द - 
चौपाई, रोला, दोहा, सोरठा, कुण्डलिया ये मात्रिक छंद हैं 
चौपाई -
चौपाई के प्रत्येक चरण में १६ मात्राएँ होती हैं तथा चरणान्त में जगण तगण नहीं होता 

उदाहरण - देखत भृगुपति बेषु कराला 
          २११  ११११   २१ १२२                  (१६ मात्रा )
         उठे सकल भय बिकल भुआला 
         १२ १११ ११ १११ १२२                    ( १६ मात्रा )
         पितु समेत कहि कहि निज नामा 
           ११ १२१ ११ ११ ११ २२                (१६ मात्रा )
          लगे करन सब दंड प्रनामा 
          १२  १११  ११  २१  २२२               (१६ मात्रा )


रोला -रोला छंद में २४ मात्राएँ होती है ग्यारहवीं और तेरहवीं मात्राओं पर विराम होता है अंत में दो गुरु होने चाहिए। 
उदाहरण 
'उठो–उठो हे वीर, आज तुम निद्रा त्यागो।
करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो।।
तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो।
भारत के दिन लौट, आयगे मेरी मानो।।
--।  ऽ ।-।  ऽ-।  ऽ--ऽ  ऽ-ऽ  ऽ-ऽ (२४ मात्राएँ)

दोहा - इस छंद के पहले तीसरे चरण में १३ मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में ग्यारह मात्राएँ होती हैं पहले तीसरे चरण का आरम्भ जगण से नहीं होना चाहिए और सम चरणों के अंत में लघु होना चाहिए।
उदाहरण -

आ रही और जा रही,        उमड़ घटा घनघोर !
बिजुरी मन चमकत रही, छम छम नाचे मोर!!… ''तनु ''

सोरठा -छंद के पहले और तीसरे चरण ग्यारह ग्यारह और दूसरे और चौथे चरण में तेरह तेरह मात्राएँ होती हैं। इसमें पहले और तीसरे चरण में तुक मिलने चाहिए। यह विषमान्त्य छंद है 
उदाहरण-
रहिमन हमें न सुहाय, अमिय पियावत मान बिनु। 
जो विष देय पिलाय,    मान सहित मरिबो भलो।। 
ऽ  ।-।  ऽ-।  ।--।              ऽ-।  ।--।  ।--ऽ  ।-

कुण्डलिया -कुंडली या कुण्डलिया छंद के शुरू में एक दोहा और उसके बाद इसमें छः चरण होते हैं प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ होती हैं दोहे का अंतिम चरण ही रोला का पहला चरण होता है इस छंद का पहला और अंतिम शब्द भी एक ही होता है। … 
आइये समझें
 दौलत पाय न कीजिये, सपने में अभिमान।
चंचल जल दिन चारिको, ठाऊँ न रहत निदान।।
ठाँऊ न रहत निदान, जयत जग में जस लीजै।
मीठे वचन सुनाय, विनय सब ही की कीजै।।
कह 'गिरिधर कविराय' अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निशि दिन चारि, रहत सबही के दौलत।

हमने आज मात्रिक छंदों के बारे में समझा प्रतिक्रिया अवश्य हो। 





Wednesday, November 12, 2014

एक मुक्तक  

''बिना मापनी ''

कुचलते हो गुलशन में गुलों को खारों पर ?  अर्क न करो !
लग चुकी कश्ती  अब           किनारों पर ?  गर्क न करो !
नतीजा न निकले  ऐसी बातों पर बहस से क्या हासिल ??? 
वक्त की कदर करो  बेमतलब मुद्दों पर ?  तर्क न करो,,,,,…''तनु ''

Sunday, November 9, 2014

राम की तरह रहो निकालो न कामनाओं का जलुश !
इन्द्रधनुष के रंगों में खो जाता है, जीवन का कलुष !!
ख़ुशी में न उछलो गगन,यूँ गम में न डूबो दो चमन,
आँसू की एक बूँद के साथ  -- है हँसी का इन्द्रधनुष !… ''तनु''
पाठ ७

मित्रों  नमन !!!

पिछले पाठ में हम ये जान गए गति, यति, चरण, तुक और मात्रा क्या हैं।  आइये आज हम गणों को जाने समझें 
गण :-  छंद के बनाने में लघु गुरु के सहयोग से गण का निर्माण होता है। ये गण संख्या में आठ होते हैं इन आठों गणों  को मुँह ज़बानी याद रखने के लिए एक सूत्र है जिससे इनको समझना आसान हो जाता है वह है। .... 
आइए समझें 

सूत्र :-  य  मा  ता  रा  ज  भा  न  स  ल गा 

आखिर के दो वर्ण 'ल' और 'ग' छंद शास्त्र के दग्धाक्षर हैं  दग्धाक्षर झ ह र भ और ष ये पाँचों अक्षर दग्धक्षर हैं इनको छंद के आरम्भ में रखना वर्जित है ( पिंगल के अनुसार )   महर्षि पिंगल अपने समय के महान लेखकों में गिने जाते थे। इन्होंने 'छन्दःशास्त्र' (छन्दःसुत्र) की रचना की थी। इनका जन्म लगभग 400 ईसा पूर्व का माना जाता है। कई इतिहासकार इन्हें 'पाणिनि' का छोटा भाई मानते है।
गण’ का विचार केवल वर्ण वृत्त में होता है मात्रिक छन्द इस बंधन से मुक्त होते हैं।

सूत्र सारिणी 

य - यगण - यमाता - १२२ -   दवाई  , नहाना --  शुभ 
मा - मगण - मातारा -२२२ - बादामी,आज़ादी  -- शुभ 
ता - ताराज - तगण - २२१ - आधार,चालाक  --  अशुभ 
रा - राजभा -  रगण - २१२ - आदमी ,पालना --- अशुभ 
ज - जभान - जगण - २१२ - मकान, करील  --- अशुभ 
भा - भानस - भगण -२११ - मानव , बादल --    शुभ 
न  -  नसल - नगण - १११ -  नयन ,कमल ----  शुभ 
स  - सलगा - सगण - ११२ - चरखा ,कमला --- अशुभ 

जब भी हम छंद या कविता करें तुकान्तता का ध्यान रखें इसके अभाव में लालित्य और प्रस्तुतीकरण में कमी आ जाती  है सिर्फ मात्राएँ, गति, यति ही ध्यान में नहीं रखी जाती वरन तुकबंदी भी ज़रूरी है और तुकांतता का ध्यान रख जाना अत्यंत आवश्यक है पदों और पंक्तियों का अंत भी नियमानुकूल हो। इस तथ्य का ध्यान रखा जाना आवश्यक है. 

तुकांतता का निर्वाह करते समय केवल अंत वाला अक्षर ही नहीं मिलाया जाता बल्कि स्वर के अनुसार शब्द को भी मिलाएँ।   तीन प्रकार की तुकान्तता होती है ---उत्तम मध्यम और निकृष्ट। .... 

वाचन करते समय स्वरों और शब्दों के न मिलने पर कविता कर्णकटु लगाती है प्रवाह टूट जाता है अंत के ठीक पहले कोशिश करें कि समवर्णी अक्षर हो पर और अगर समवर्णी न मिल पाये तो कम से कम सामान स्वर हो ताकि सुनने वालों को कर्णकटु न लगकर आपकी रचना  सरस लगे और पढने वालों का प्रवाह न टूटे ।  


आइए समझें 

उत्तम तुकान्तता होगी 
आवत जावत ,--आइए  जाइए ,--बरसत सरसत ,--कुआँ धुआँ ,--मोहित लोहित। …… 

माध्यम तुकान्तता होगी 
बुझना कूदना ,--सहारा सकारा ,--पुकार मज़ार ,---जानत पिवत। ....... 

निकृष्ट तुकांतता होगी 
कहिये खोइए ,----समर कहार ,----उचित सुनत ,---उघरत विलसित। 

आज हमने गणों और तुकान्तता के बारे में समझा आशा है आपको ये पाठ रोचक लगा होगा। 


विनय सहित 
तनुजा ''तनु ''











Saturday, November 8, 2014

इंतज़ार नहीं !!! सुबह  आ  धमकी ढेर काम लिए, 
वक्त नज़ाकत से चल रहा था मन में अरमान लिए ,
क्यों भूलना कठिन है ?  क्यों याद रखना कठिन  ,
सुबह !! सुबह !!  योजना रात ही सारे सामान लिए..... ''तनु ''






आस का फूल
कहीं धुआँ हो जाए
 बारूद ढेर 
धुँआ …

धर्म में ये कैसी --धुँए की बास
कूपमण्डूकों को  कुँए की आस
अगर तगर ना भावे इनको
राजनीति बनी जुए की ख़ास

गुज़रा लम्हा यूँ , धुँआ धुँआ हुआ,
गम और ख़ुशी का था छुआ हुआ !
वक्त आज़ाद पंछी उड़ा उड़ गया,
हर कोई कहे ----  यहाँ जुआ हुआ !!!''तनु'' 

जादू की पोटली में--- धुँए का बम
छोटी सी ओखली में ,कुँए का भ्रम
मन पर हो काबू इच्छाशक्ति प्रबल
है अंगद का पांव हिलादे जो हो दम

क्या जानों धुँए में--- क्या छुपा छुपा 
खंज़र है ------ सीने में जो घुपा घुपा 
ये जलते मंजर, विधवा की चीखें !!! 
न बोला ना सुना सब       चुपा चुपा 





























Friday, November 7, 2014


 मोगरे की कलियाँ जो लगी झूलने गजरे में , 
 कचनार रूठ  गया औ चला फूलने मगरे में !! 
 कैसे मनाऊँ !!! रूठी  चम्पा, जूही, चमेली को ,
 रूठ गया गुलाब लगी चाँदनी ढुलने सगरे में  !! ''तनु ''

Thursday, November 6, 2014

 घट्टी  ने पीसा
 अनाज ढेर सारा
  कुटुंब पाल

कोल्हू का बैल
निकाले तिल तेल
निखारे काया

रहट जल
क्यारियों को सींचता
तृप्त धरणी

 अनवरत
खींच रहे रहट
जल सींचन

 पुरखे बन
शाखामृग प्रसन्न
आये  न कल

खांच खनकी
निरंतर चलती
घमक घट्टी

खवां खाँच bangles up to shoulders

ओखली करे
धान कुटाई सारी
छिलका गुम





Wednesday, November 5, 2014

ओढायी  थी रात ने धरा को मोती की चादर ,
ऊषा लाई प्रभात समेट ली सूरज ने सादर !
बिखेर समेटना बंध खुलना जीवन संग ये होता !!!
देखो तो सूरज ही सभी को खुशियाँ देता आकर ...''तनु ''
सितारों में चमक रही, हँसते आकाश की !
धरती हँस हँसती रही, बिखेरती आस सी !!... ''तनु ''
सिर्फ लालटेन का
 नहीं ज़िक्र 
 कहो क्या न थी ??
 चिमनी की फ़िक्र.... 
बत्ती वाला स्टोव्ह 
वो 
दमघोंटू घासलेटी 
सन्नाटा …
पम्प भरो जलाओ
वो 
भर्र भर्र भर्र 
भर्राटा .... 
नहीं हुआ विग्रह 
हाँ !!!....   तो मैं नानी हूँ 
इन सारी वस्तुओं का 
हाँ  हुआ संग्रह 
 कहानी हूँ .... ''तनु ''
दोहे 

मोर मोर ही कह रहे , बना उसे सिरमोर !
जाने है विधना यही, बहे आँख घनघोर !!

मोर पपीहा चातकी , बात बिना मशहूर ! 
मेरे मन की क्या कहूँ, रोय गंवाया नूर !!

मोर बिना बादल नहीं, बादल बिन बरसात !

जिन नैनन आँसू रहे,   बिन बादल बरसात !!

आ रही और जा रही,        उमड़ घटा घनघोर !
बिजुरी मन चमकत रही, छम छम नाचे मोर!!… ''तनु ''



Tuesday, November 4, 2014

राहू की महादशा में हो जाते भ्रम हैं
दिनचर्या टूटती है और टूटते क्रम हैं
ईलाज नाकाफी होता दिल नासाज हो
नहीं आराम राहत कहाँ बढते श्रम हैं ''तनु ''

Monday, November 3, 2014

मित्रों नमन !!!

मत्तगयन्द सवैया छंद---- पाठ -२
कल के मत्तगयन्द सवैया छंद की जानकारी अधूरी रहेगी अगर उसमें ये न बताया जाए .......


मत्तगयंद सवैया छंद में चार पद होते हैं और सभी तुकांत होते हैं , जब तक कि किसी प्रयोजन विशेष के चलते रचनाकार ने कोई नवीन प्रयोग किया हो.…………  

एक उदाहरण लेते हैं -

सीस पगा न झगा तन में प्रभु ,जाने को आहि बसै केहि ग्रामा। 
धोति फटी -सि लटी दुपटी अरु ,पाँयउ पानहि की नहि सामा।। 
द्वार खरो द्विज दुर्बल एक रह्यौ चकि सौ वसुधा अभिरामा। 
पूछत दीन  दयाल को धाम , बतावत आपणो नाम सुदामा।।
  
सीसप       २११ 
गानझ      २११ 
गातन       २११ 
में प्रभु       २११ 
जानै को    २११ 
आहिब      २११ 
सै केहि      २११ 
ग्रामा          २२ 

ध्यान से देखा जाए तो पांचवे भगण में कुछ अनियमितता एक अस्पष्टता सी झलकती है   .... जानैको- भगण न होकर मगण प्रतीत हो रहा है किन्तु हम जब पद को गाते हैं तो वाचन प्रवाह के अनुसार ये शब्द ''जानै को '' जानक ही पढ़ा जाएगा न कि ''जानैको ''

इसी प्रकार अब सातवाँ भगण देखिये यहाँ ''सैकेहि'' को सैकहि पढ़ा जाएगा …  

अगर उदाहरण के अन्य पदों को देखें तो .......... 

धोति फटी -सि लटी दुपटी अरु ,पाँयउ पानहि की नहि सामा।। 

ध्यान देने वाली बात ये है कि धोती को धोति--- फटी-सी को फटी -सि तथा नहीं को नहिं लिखा गया है इसे अक्षर दोष की तरह न देखकर छंद उच्चारण प्रवाह के अनुसार शब्द के अक्षर में स्वराघात में बदलते हुए उच्चारित करने पर गलती न लगते हुए सब सही लगता है। यही कारण है कि सवैये हिंदी के आंचलिक रूप को आसानी से स्वीकारते हैं अब हम समझ गए हैं कि कारक विभक्तियों के चिन्ह छंद रचते समय आवश्यकतानुसार लघु रूप में व्यवहार में आते हैं। 

प्रश्न ;- प्रस्तुत उदाहरण में लिए सवैया छंद के रचनाकार कौन हैं ?

प्रस्तुत आलेख प्राप्त जानकारी और उपलब्ध साहित्य पर आधारित है 
आइए कविवर  के मत्तगयंद  सवैया छंद का विश्लेषण करें
ये २३ वर्ण का है सात बार भगण और अंत में गुरु गुरु है
यानी मत्त गवैया छंद =भगण x ७ +गुरु +गुरु 
तुकांत  =  धरावै, जरावै,  बतरावै,  सुनावै ……  

भानस     भानस    भानस   भानस   भानस    भानस    भानस       गुरु गुरु  
२११         २११       २११     २११       २११       २११       २११          २२ 
गावत      गीतगु   पालन    आवत     गोपिन     धीरज    कौनध      रावै,  २३ वर्ण 
भानस     भानस   भानस    भानस    भानस    भानस      भानस      गुरु गुरु 
२११         २११      २११       २११      २११        २११         २११         २२ 
देकर       पीरदु     खीकर     नैनस    दामन      मेंवह      आगज      रावै २३ वर्ण 

प्रीति करें पछतावत गूजर जाकर कै जसुदा बतरावै,
लूटत है दधि माखन मोहन बांसुरि तान न नैक सुनावै।

इन छंदों का मज़ा गाकर ही लिया जा सकता है,  वस्तुतः ग़ज़ल या छान्दसिक रचनाएँ पढने की चीज़ थी ही नहीं ये श्रोताओं द्वारा सुनने के लिए लिखी जाती थी कही जाती थी लीजिये काव्यगत प्रस्तुतियों में इस सवैया का मज़ा गाकर लीजिये। 

Sunday, November 2, 2014

मित्रों नमन !!!

हमारे कुछ मित्रो ने सवैया छंद के बारे में जानकारी चाही है हो सकता है वे गणों  के बारे में जानकारी रखते हों।उनकी विशेष फरमाइश पर मैं सवैया छंद के बारे में आधारभूत जानकारी देने जा रही हूँ बाकी पाठों को आपके खातिर यथावत ही प्रेषित करुँगी ....

 एक गण को जो मूलतः तीन वर्णों के योग से बनता है जिसमें लघु गुरु मात्राएँ होती है यगण मगण  सगण आदि की सात आवृतियों के साथ लघु या गुरु वर्ण या एक या अधिक कोई  या अन्य किसी भी गण से बनी आवृति को जो कि पद बनाती है ऐसे चार पदों का समूह सवैया छंद कहलाता  है इस प्रकार एक बात तो स्पष्ट हो गयी कि.सवैया …

आइये समझें

लयमूलक
ये छंद वार्णिक होते हैं
स्वरुप तुकांत
चार पद या चरण
वर्ण २२ से २६

वर्णिक पंक्तियों को वृत्त कहते हैं २२ से  २६ वर्ण के चरण या पद वाले एक प्रकार के जाती वाले छंदों को सवैया छंद कहा जाता है ये लय मूलक है यहाँ मेने   पद व् चरण दोनों की बात कही है वह इसलिए कि कई प्रकार के सवैया होते हैं अब चूँकि ये वार्णिक होते हैं इसलिए इनमें गणों  के साथ शब्दों को स्थान प्राप्त है इस लिए इसके पद  आज की हिंदी को नहीं स्वीकारते।वाचन के क्रम में कई शब्दों की मात्राएँ गणों के अनुसार बरतनी पड़ती है जैसे   ''मन में''   बोलने का तरीका अलग और     ''मनहि'''   बोलने का अलग.....  लेकिन दोनों का अर्थ एक ही है  जैसे…'''सारे''' …'''सगरे '''  '''ही'''    '''हि ''   ''''मन''''....  ''मनवा''' ''नहीं'' ''नहिं ''इसलिए  हिन्दी  का आंचलिक रूप इसे अधिक संतुष्ट करता है सवैया छंद में रचनाकर्म  इन भाषाओं में सरल है जैसे अवधी  बृज  भोजपुरी में

आशा है आपको संतुष्टि हुई होगी …………






Saturday, November 1, 2014

मित्रो नमन !!!
पाठ 6 .

गति :-    जब भी हम कोई कविता रचते हैं उस पद्य के पाठ में जो बहाव होता है हम उसे गति कहते है

यति :-     यदि हम उस गति को उस लय को तोड़ दें यानी पद्य पाठ के बहाव में रोक लगा दें उस रोक को यति कहते हैं 

तुक :-     पद्य अधिकतर तुकांत होते हैं सामान उच्चारण वाले शब्दों के प्रयोग को तुक कहा जाता है

मात्रा :-   वर्ण का उच्चारण जब हम करते हैं उस उच्चारण में जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं पूर्व में समझाया गया है लघु गुरु मात्रा  .... लघु मात्रा का मान  ''।'' …ग़ुरु मात्र का मान ''S''  …चिन्ह से प्रकट किया जाता है लघु का मान १ व गुरु का मान २ होता है। 

चरण तथा पद  :- वर्णों के सामंजस्य से जो पंक्तियाँ लिखी जाती हैं वे चरण या पद कहलाती है। 
हर कविता  में चरण या पद या चरण + पद होते हैं। 
एक पंक्ति को पद तथा  पद में यति / गति अर्थात रुकने के आधार पर चरण होते हैं 

आइये समझें 
एक दोहा ....... 
बड़ा हुआ तो क्या हुआ,   जैसे पेड़ खजूर !
पंथी को छाया नहीं,  फल लागे अति दूर !!
प्रस्तुत छंद में दो पंक्ति अर्थात दो पद हैं 
बड़ा हुआ तो क्या हुआ ,   जैसे पेड़ खजूर ! ये एक पद है 
पंथी को छाया नहीं,  फल लागे अति दूर !! ये दूसरा पद है 

इसका पहला चरण है 
बड़ा हुआ तो क्या हुआ
इसका दूसरा चरण है 
जैसे पेड़ खजूर !
इसका तीसरा चरण है 
पंथी को छाया नहीं, 
इसका चौथा चरण है 
फल लागे अति दूर !!    
इस प्रकार दो पदों में चार चरण हुए। ....  

गण  :-   वर्ण मात्रा के क्रम की सुविधा के लिए तीन वर्णों के समूह को एक गण मान लिया गया है इस प्रकार के गणोंकी संख्या आठ है -  यगण(।SS ),   मगण( SSS ), तगण( SS। ), रगण ( S।S ), जगण (।S।) ,  भगण (S।।) , नगण  (। । । ),सगण  (।।S)

गणों  को आसानी से याद करने के लिए सूत्र बना लिया गया है---- यमाताराजभानसलगा  …
ये पाठ बस यहीं तक.....  धन्यवाद मित्रो  ................ 
गणों  को हम अगले पाठ में लेंगे …
विनय सहित
कड़वा ही बोलना है ???  बोलने की जहमत क्यों ?
मनवा  कपटी  है तो ये दिखावटी खिदमत क्यों  ?? 
दाता वही …  एक ऊपर ....  उसकी बराबरी क्या ,,,,,,
सभी नाम उसका छुपा के यूँ  बाँटते रहमत क्यों  !!!… ''तनु ''