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Wednesday, November 5, 2014

ओढायी  थी रात ने धरा को मोती की चादर ,
ऊषा लाई प्रभात समेट ली सूरज ने सादर !
बिखेर समेटना बंध खुलना जीवन संग ये होता !!!
देखो तो सूरज ही सभी को खुशियाँ देता आकर ...''तनु ''

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