ओढायी थी रात ने धरा को मोती की चादर ,
ऊषा लाई प्रभात समेट ली सूरज ने सादर !
बिखेर समेटना बंध खुलना जीवन संग ये होता !!!
देखो तो सूरज ही सभी को खुशियाँ देता आकर ...''तनु ''
ऊषा लाई प्रभात समेट ली सूरज ने सादर !
बिखेर समेटना बंध खुलना जीवन संग ये होता !!!
देखो तो सूरज ही सभी को खुशियाँ देता आकर ...''तनु ''
No comments:
Post a Comment