नायाब / अनमोल
माना जीत बहारों की, ये चमन बना अनमोल !
शब्द भावना में जड़े ये काव्य बना अनमोल !!
सैंकड़ों रचनाएँ एक तिल की खातिर रच गयीं ,
सूरत ! सीरत भूल गयी, ये दाग बना अनमोल !
हूँ लाया क्या ? कुछ भी तो नायाब नहीं !
नाकारा !!! कहीं भी तो कामयाब नहीं !!
न करो तुलना होगा क्या हासिल हमें !
नेकी दिल में उसके?? वो पायाब नहीं !!
दर्पण यहाँ अनमोल है , पर धड़कता क्यों नहीं ?
सूरज सा चमकीला है पर धधकता क्यों नहीं ??
अभी गर्द औ गुबार पड़ी आँखों पर उसकी ,
आई घडी नायाब है पर फड़कता क्यों नहीं ?
बिन विमोचन पुस्तकें रच गए अनमोल हैं !
सीख अनोखी उनकी, मधुर जिनके बोल हैं !!
सीप में मोती सी , कौमुदी बनीज्ञान की !
संस्कार ले समाज का , निभता हर कौल है !!
आब की नायाब थी बूँद वो चम - चम चमकती !
ताब थी आब थी पात पर वो दम - दम दमकती !!
आई हिलोर पवन की तो लगी डोलने यूँ ,,,,,,,,
झूलना झूलती पात पर वो गम - गम गमकती !
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