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Saturday, November 15, 2014


नायाब  / अनमोल 


माना जीत बहारों की, ये चमन बना अनमोल !
शब्द भावना  में जड़े ये काव्य बना अनमोल  !!
सैंकड़ों रचनाएँ एक तिल की खातिर रच गयीं ,
सूरत ! सीरत भूल गयी,  ये दाग बना अनमोल !

हूँ लाया क्या ? कुछ भी तो नायाब नहीं ! 

नाकारा !!!  कहीं भी  तो कामयाब नहीं  !! 
न करो तुलना  होगा क्या  हासिल हमें !
नेकी दिल में उसके??  वो पायाब नहीं !! 

दर्पण यहाँ अनमोल है , पर धड़कता क्यों नहीं ?

सूरज सा चमकीला है पर धधकता क्यों नहीं ??  
अभी  गर्द  औ  गुबार पड़ी आँखों पर उसकी  , 
आई घडी नायाब है    पर फड़कता क्यों नहीं ?


बिन  विमोचन पुस्तकें रच गए अनमोल हैं !  

सीख अनोखी उनकी,  मधुर जिनके बोल हैं !!
सीप में मोती सी ,      कौमुदी बनीज्ञान की ! 
संस्कार ले समाज का ,  निभता हर कौल है !!


आब की नायाब थी  बूँद वो चम - चम चमकती ! 
ताब थी आब थी पात पर वो दम - दम  दमकती !!
आई हिलोर पवन की तो लगी डोलने यूँ  ,,,,,,,,
झूलना  झूलती पात पर वो गम - गम गमकती !


















                                            



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