नवगीत
नवगीत :--- काव्य धारा की नयी विधा ''नवगीत'' …इस काव्य धारा के प्रेरक सूरदास, तुलसीदास, मीरा बाई और भारतीय परम्परा में निहित लोकगीतों की है ,…हिन्दी में महादेवी वर्मा ,निराला ,बच्चन सुमन,गोपाल सिंह नेपाली आदि ने बहुत सुन्दर गीत लिखे हैं ,… नवगीत लिखे जाने की परम्परा की धारा भले ही कम बही हो पर रुकी नहीं इन नवगीतों की शुरुआत आज़ादी के बाद से ही नयी कविता के दौर से ही समानांतर चलती रही।
अब हम समझें कि ये गीत और नवगीत का अंतर क्या है ??? ..........
तो पहला अंतर ये कि छायावादी गीत आज का नवगीत नहीं माना जाएगा क्योंकि काल का अंतर है ,…
निराला के कई गीत नवगीत हैं ,…… परन्तु दूसरा अंतर जो कि आज के नवगीत और उनके नवगीतों का है वो रूपाकार का अंतर है क्योकि कथ्य के अनुरूप नवगीत का रूपाकार बदल सकता है और इस बदलने में लय एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जबकि गीत छंदमय होते थे ,…तीसरा अंतर है कथ्य और उसकी भाषा ,क्योकि नवगीत समय की सापेक्षता को स्वीकारता है. अहा!!! कितनी अच्छी बात सोची मैंने ''गीत व्यक्ति है और नवगीत समष्टि है ''…… छंद को गढ़ना और उसे गेय बनाना गीत के लिए ज्यादह महत्त्व पूर्णहै।
अब हम ये समझें कि वास्तव में नवगीत क्या है ?
१. :---नवगीत में एक मुखड़ा और दो या तीन अंतरे होना चाहिए।
२. :---अंतरे की आखिरी पंक्ति मुखड़े की अंतिम पंक्ति के सामान हो यानि तुकांत हो जिससे अंतरे के बाद मुखड़े की पंक्ति को दोहराया जा सके।
३, :---- वैसे तो नवगीत में छंद से सम्बंधित कोई विशेष नियम नहीं है पर ध्यान रहे कि मात्राएँ संतुलित रहें। जिससे लय और गेयता बनी रहे।
नवगीत में मात्राओं की गिनती कैसे करें ?
आइये समझें ,………
ये मैं आपको समझा चुकी हूँ कि मात्राओं की गणना कैसे करें। नवगीत में मात्राओं की गिनती करना सरल है
आइये समझें,………
ह्रस्व स्वर १ मात्रा जैसे अ,इ ,उ ,ऋ
दीर्घ स्वर २ मात्रा जैसे आ , ई , ऊ, ए, ऐ , ओ , औ
ध्यान दीजिये …व्यंजन यदि स्वर से जुड़ा है तो उसकी अलग कोई मात्रा नहीं गिनी जाती लेकिन यदि दो स्वरों के बीच दो व्यंजन आते हैं तो व्यंजन की भी एक मात्रा गिनी जाती है जैसे कल = २ मात्रा,.... कल्प = ३ मात्रा इसी प्रकार धन्य मन्त्र शिल्प ये सभी ३ मात्राओं वाले होंगे।
समझें ,....... ध्यान दीजिए यदि दो व्यंजन सबसे पहले आकर स्वर से मिलते हैं तो स्वर की ही मात्रा गिनी जायेगी जैसे त्रिधूल त्रि = १, धू = २, ल = १, क्षमा =३ , क्षम्य = ३, क्षत्राणी = ५ शत्रु =३ , न्यून =३ , चंचल =४ , … कौआ =४ ,… सादा = ४ ,....।
नवगीत कैसे लिखें ?
नवगीत लिखते समय इन बातों का ध्यान रखें।
आइये समझें ,..........
१. - संस्कृति व लोकतत्व का समावेश हो।
२. - तुकांत की जगह लयात्मकता को देखें।
३.----नए प्रतीकों का समावेश हो नए बिम्ब धारण करें
४.---- वैज्ञानिक दृष्टिकोंण रखें।
५.-----प्रस्तुतीकरण का ढंग प्रभावशाली हो नयापन लिए हो.
६ ----अध्ययन जारी रखें क्योंकि शब्द भण्डार जितना अधिक नवगीत उतना अच्छा।
७. ---- छंद मुक्त है लेकिन नवगीत की पायल बजती रहे लय में।
८. ----सकारात्मक सोच हो।
९. ----प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण करें।
१०. - संस्कृति में, लोकतत्व में, प्रकृति में स्वयं को समाहित करें तो लिखना सहज हो जाएगा।
विनय सहित
नवगीत :--- काव्य धारा की नयी विधा ''नवगीत'' …इस काव्य धारा के प्रेरक सूरदास, तुलसीदास, मीरा बाई और भारतीय परम्परा में निहित लोकगीतों की है ,…हिन्दी में महादेवी वर्मा ,निराला ,बच्चन सुमन,गोपाल सिंह नेपाली आदि ने बहुत सुन्दर गीत लिखे हैं ,… नवगीत लिखे जाने की परम्परा की धारा भले ही कम बही हो पर रुकी नहीं इन नवगीतों की शुरुआत आज़ादी के बाद से ही नयी कविता के दौर से ही समानांतर चलती रही।
अब हम समझें कि ये गीत और नवगीत का अंतर क्या है ??? ..........
तो पहला अंतर ये कि छायावादी गीत आज का नवगीत नहीं माना जाएगा क्योंकि काल का अंतर है ,…
निराला के कई गीत नवगीत हैं ,…… परन्तु दूसरा अंतर जो कि आज के नवगीत और उनके नवगीतों का है वो रूपाकार का अंतर है क्योकि कथ्य के अनुरूप नवगीत का रूपाकार बदल सकता है और इस बदलने में लय एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जबकि गीत छंदमय होते थे ,…तीसरा अंतर है कथ्य और उसकी भाषा ,क्योकि नवगीत समय की सापेक्षता को स्वीकारता है. अहा!!! कितनी अच्छी बात सोची मैंने ''गीत व्यक्ति है और नवगीत समष्टि है ''…… छंद को गढ़ना और उसे गेय बनाना गीत के लिए ज्यादह महत्त्व पूर्णहै।
अब हम ये समझें कि वास्तव में नवगीत क्या है ?
१. :---नवगीत में एक मुखड़ा और दो या तीन अंतरे होना चाहिए।
२. :---अंतरे की आखिरी पंक्ति मुखड़े की अंतिम पंक्ति के सामान हो यानि तुकांत हो जिससे अंतरे के बाद मुखड़े की पंक्ति को दोहराया जा सके।
३, :---- वैसे तो नवगीत में छंद से सम्बंधित कोई विशेष नियम नहीं है पर ध्यान रहे कि मात्राएँ संतुलित रहें। जिससे लय और गेयता बनी रहे।
नवगीत में मात्राओं की गिनती कैसे करें ?
आइये समझें ,………
ये मैं आपको समझा चुकी हूँ कि मात्राओं की गणना कैसे करें। नवगीत में मात्राओं की गिनती करना सरल है
आइये समझें,………
ह्रस्व स्वर १ मात्रा जैसे अ,इ ,उ ,ऋ
दीर्घ स्वर २ मात्रा जैसे आ , ई , ऊ, ए, ऐ , ओ , औ
ध्यान दीजिये …व्यंजन यदि स्वर से जुड़ा है तो उसकी अलग कोई मात्रा नहीं गिनी जाती लेकिन यदि दो स्वरों के बीच दो व्यंजन आते हैं तो व्यंजन की भी एक मात्रा गिनी जाती है जैसे कल = २ मात्रा,.... कल्प = ३ मात्रा इसी प्रकार धन्य मन्त्र शिल्प ये सभी ३ मात्राओं वाले होंगे।
समझें ,....... ध्यान दीजिए यदि दो व्यंजन सबसे पहले आकर स्वर से मिलते हैं तो स्वर की ही मात्रा गिनी जायेगी जैसे त्रिधूल त्रि = १, धू = २, ल = १, क्षमा =३ , क्षम्य = ३, क्षत्राणी = ५ शत्रु =३ , न्यून =३ , चंचल =४ , … कौआ =४ ,… सादा = ४ ,....।
नवगीत कैसे लिखें ?
नवगीत लिखते समय इन बातों का ध्यान रखें।
आइये समझें ,..........
१. - संस्कृति व लोकतत्व का समावेश हो।
२. - तुकांत की जगह लयात्मकता को देखें।
३.----नए प्रतीकों का समावेश हो नए बिम्ब धारण करें
४.---- वैज्ञानिक दृष्टिकोंण रखें।
५.-----प्रस्तुतीकरण का ढंग प्रभावशाली हो नयापन लिए हो.
६ ----अध्ययन जारी रखें क्योंकि शब्द भण्डार जितना अधिक नवगीत उतना अच्छा।
७. ---- छंद मुक्त है लेकिन नवगीत की पायल बजती रहे लय में।
८. ----सकारात्मक सोच हो।
९. ----प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण करें।
१०. - संस्कृति में, लोकतत्व में, प्रकृति में स्वयं को समाहित करें तो लिखना सहज हो जाएगा।
विनय सहित
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