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Wednesday, November 12, 2014

एक मुक्तक  

''बिना मापनी ''

कुचलते हो गुलशन में गुलों को खारों पर ?  अर्क न करो !
लग चुकी कश्ती  अब           किनारों पर ?  गर्क न करो !
नतीजा न निकले  ऐसी बातों पर बहस से क्या हासिल ??? 
वक्त की कदर करो  बेमतलब मुद्दों पर ?  तर्क न करो,,,,,…''तनु ''

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