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Sunday, November 2, 2014

मित्रों नमन !!!

हमारे कुछ मित्रो ने सवैया छंद के बारे में जानकारी चाही है हो सकता है वे गणों  के बारे में जानकारी रखते हों।उनकी विशेष फरमाइश पर मैं सवैया छंद के बारे में आधारभूत जानकारी देने जा रही हूँ बाकी पाठों को आपके खातिर यथावत ही प्रेषित करुँगी ....

 एक गण को जो मूलतः तीन वर्णों के योग से बनता है जिसमें लघु गुरु मात्राएँ होती है यगण मगण  सगण आदि की सात आवृतियों के साथ लघु या गुरु वर्ण या एक या अधिक कोई  या अन्य किसी भी गण से बनी आवृति को जो कि पद बनाती है ऐसे चार पदों का समूह सवैया छंद कहलाता  है इस प्रकार एक बात तो स्पष्ट हो गयी कि.सवैया …

आइये समझें

लयमूलक
ये छंद वार्णिक होते हैं
स्वरुप तुकांत
चार पद या चरण
वर्ण २२ से २६

वर्णिक पंक्तियों को वृत्त कहते हैं २२ से  २६ वर्ण के चरण या पद वाले एक प्रकार के जाती वाले छंदों को सवैया छंद कहा जाता है ये लय मूलक है यहाँ मेने   पद व् चरण दोनों की बात कही है वह इसलिए कि कई प्रकार के सवैया होते हैं अब चूँकि ये वार्णिक होते हैं इसलिए इनमें गणों  के साथ शब्दों को स्थान प्राप्त है इस लिए इसके पद  आज की हिंदी को नहीं स्वीकारते।वाचन के क्रम में कई शब्दों की मात्राएँ गणों के अनुसार बरतनी पड़ती है जैसे   ''मन में''   बोलने का तरीका अलग और     ''मनहि'''   बोलने का अलग.....  लेकिन दोनों का अर्थ एक ही है  जैसे…'''सारे''' …'''सगरे '''  '''ही'''    '''हि ''   ''''मन''''....  ''मनवा''' ''नहीं'' ''नहिं ''इसलिए  हिन्दी  का आंचलिक रूप इसे अधिक संतुष्ट करता है सवैया छंद में रचनाकर्म  इन भाषाओं में सरल है जैसे अवधी  बृज  भोजपुरी में

आशा है आपको संतुष्टि हुई होगी …………






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