Labels

Monday, November 3, 2014

मित्रों नमन !!!

मत्तगयन्द सवैया छंद---- पाठ -२
कल के मत्तगयन्द सवैया छंद की जानकारी अधूरी रहेगी अगर उसमें ये न बताया जाए .......


मत्तगयंद सवैया छंद में चार पद होते हैं और सभी तुकांत होते हैं , जब तक कि किसी प्रयोजन विशेष के चलते रचनाकार ने कोई नवीन प्रयोग किया हो.…………  

एक उदाहरण लेते हैं -

सीस पगा न झगा तन में प्रभु ,जाने को आहि बसै केहि ग्रामा। 
धोति फटी -सि लटी दुपटी अरु ,पाँयउ पानहि की नहि सामा।। 
द्वार खरो द्विज दुर्बल एक रह्यौ चकि सौ वसुधा अभिरामा। 
पूछत दीन  दयाल को धाम , बतावत आपणो नाम सुदामा।।
  
सीसप       २११ 
गानझ      २११ 
गातन       २११ 
में प्रभु       २११ 
जानै को    २११ 
आहिब      २११ 
सै केहि      २११ 
ग्रामा          २२ 

ध्यान से देखा जाए तो पांचवे भगण में कुछ अनियमितता एक अस्पष्टता सी झलकती है   .... जानैको- भगण न होकर मगण प्रतीत हो रहा है किन्तु हम जब पद को गाते हैं तो वाचन प्रवाह के अनुसार ये शब्द ''जानै को '' जानक ही पढ़ा जाएगा न कि ''जानैको ''

इसी प्रकार अब सातवाँ भगण देखिये यहाँ ''सैकेहि'' को सैकहि पढ़ा जाएगा …  

अगर उदाहरण के अन्य पदों को देखें तो .......... 

धोति फटी -सि लटी दुपटी अरु ,पाँयउ पानहि की नहि सामा।। 

ध्यान देने वाली बात ये है कि धोती को धोति--- फटी-सी को फटी -सि तथा नहीं को नहिं लिखा गया है इसे अक्षर दोष की तरह न देखकर छंद उच्चारण प्रवाह के अनुसार शब्द के अक्षर में स्वराघात में बदलते हुए उच्चारित करने पर गलती न लगते हुए सब सही लगता है। यही कारण है कि सवैये हिंदी के आंचलिक रूप को आसानी से स्वीकारते हैं अब हम समझ गए हैं कि कारक विभक्तियों के चिन्ह छंद रचते समय आवश्यकतानुसार लघु रूप में व्यवहार में आते हैं। 

प्रश्न ;- प्रस्तुत उदाहरण में लिए सवैया छंद के रचनाकार कौन हैं ?

प्रस्तुत आलेख प्राप्त जानकारी और उपलब्ध साहित्य पर आधारित है 

2 comments:

  1. सुदामा चरित के रचयिता नरोत्तमदास जी की रचना है।

    ReplyDelete