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Monday, November 24, 2014

मैं वही  हूँ जो,
बहारों की,
किताब लिखती हूँ !!
तन्हाई की रातो में,
सितारे नायाब लिखती हूँ!!!

अभिशप्त है जो
कोख से,
विज्ञान की जन्मा
खैरात दे ,
बना निकम्मा !
आधुनिकता का
जामा पहन ,
विकास की
प्रक्रिया लिखती हूँ !!
मैं वही हूँ जो 
बहारों की,
किताब लिखती हूँ !!!

 सांसे घुटती है,
 दिल रोने को आता ,
 होती है 
आँखों में जलन,
जी चाहता है ,
दो घूँट पय 
 उन परिंदों … 
 उस गुलाब को दूँ 
 जो पयोद लाये ,
 हरित धरा,
 पहनाए वो 
 लिबास लिखती हूँ !!
 मैं वही  हूँ जो
 बहारों की
 किताब लिखती हूँ !!!

क्या गौरैया नहीं,
बिरहिन ही गाएगी 
क्या खून खार … 
धुएँ से
धरा पट जायेगी ?
आर्तनाद क्रंदन
अपशिष्ट ,
उत्सर्जन, 
विखंडित सूर्य !!!
धुआँ धुआँ ,
महताब लिखती हूँ !!
 मैं वही  हूँ जो
 बहारों की
 किताब लिखती हूँ!!!''तनु ''

















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