मित्रों नमन !!!
पाठ - ८
कविता रचने की आधारभूत जानकारी के बाद हम फिर अपने उस पाठ पर आते हैं जहाँ से शुरुआत की थी यानि छंद के बारे में ………………:)
प्रत्येक पंक्ति पद कहलाती है विश्राम के आधार पर चरण का निर्माण होता है.… विश्राम नहीं चरण नहीं। चरणों के बारे में हम पिछले पाठ में समझ चुके हैं..............
दो पंक्ति द्विपदी कहलाती है।
चार पंक्ति को चतुष्पदी कहते हैं।
प्रत्येक पंक्ति पद कहलाती है विश्राम के आधार पर चरण का निर्माण होता है.… विश्राम नहीं चरण नहीं। चरणों के बारे में हम पिछले पाठ में समझ चुके हैं..............
दो पंक्ति द्विपदी कहलाती है।
चार पंक्ति को चतुष्पदी कहते हैं।
ये मेरा दुस्साहस ही कहें कि मैं इस विषय पर विवेचना लिए आप के साथ हूँ क्योंकि छंद समूह में अभी तक ऐसा कोई लेख प्राप्त नहीं है जिस में छंद के मूलभूत तत्वों पर चर्चा हुई हो मुझसे अगर कोई भूल हो जाए तो आप सभी मेरा मार्गदशन करें।
छंद क्या हैं ? छंद कविता है पद्य है जो गणना में बंधा है। भाषा शब्द वर्ण और स्वर मिलकर एक निश्चित विधान में सुव्यस्थित होकर छंद बनाते हैं। इस प्रकार छंद की परिभाषा ……
ये हुई...................
''सामान्यतः वर्णों और मात्राओं की गेयव्यवस्था को छंद कहा जाता है'' ....
छंद तीन प्रकार के होते हैं
आइये समझें……………
१ - वार्णिक छंद - ऐसे छंद जिनकी रचना वर्णों की गणना नियमानुसार होती है उन्हें ''वार्णिक छंद ''कहते हैं।
२ - मात्रिक छंद - जिन छंदों के चारों चरणों की रचना मात्राओं की गणना के अनुसार की जाती है उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं।
३ - अतुकांत और छंद मुक्त -ऐसे छंद जिनकी रचना में वर्णों और मात्राओं की संख्या का कोई नियम नहीं होता उन्हें छंद मुक्त काव्य कहते हैं ये तुकांत भी हो सकते हैं और अतुकांत भी।
प्रमुख मात्रिक छन्द -
चौपाई, रोला, दोहा, सोरठा, कुण्डलिया ये मात्रिक छंद हैं
चौपाई -
चौपाई के प्रत्येक चरण में १६ मात्राएँ होती हैं तथा चरणान्त में जगण तगण नहीं होता
उदाहरण - देखत भृगुपति बेषु कराला
२११ ११११ २१ १२२ (१६ मात्रा )
उठे सकल भय बिकल भुआला
१२ १११ ११ १११ १२२ ( १६ मात्रा )
पितु समेत कहि कहि निज नामा
११ १२१ ११ ११ ११ २२ (१६ मात्रा )
लगे करन सब दंड प्रनामा
१२ १११ ११ २१ २२२ (१६ मात्रा )
सोरठा -छंद के पहले और तीसरे चरण ग्यारह ग्यारह और दूसरे और चौथे चरण में तेरह तेरह मात्राएँ होती हैं। इसमें पहले और तीसरे चरण में तुक मिलने चाहिए। यह विषमान्त्य छंद है
उदाहरण-
रहिमन हमें न सुहाय, अमिय पियावत मान बिनु।
जो विष देय पिलाय, मान सहित मरिबो भलो।।
ऽ ।-। ऽ-। ।-ऽ-। ऽ-। ।-।-। ।-।-ऽ ।-ऽ
कुण्डलिया -कुंडली या कुण्डलिया छंद के शुरू में एक दोहा और उसके बाद इसमें छः चरण होते हैं प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ होती हैं दोहे का अंतिम चरण ही रोला का पहला चरण होता है इस छंद का पहला और अंतिम शब्द भी एक ही होता है। …
आइये समझें
दौलत पाय न कीजिये, सपने में अभिमान।
चंचल जल दिन चारिको, ठाऊँ न रहत निदान।।
ठाँऊ न रहत निदान, जयत जग में जस लीजै।
मीठे वचन सुनाय, विनय सब ही की कीजै।।
कह 'गिरिधर कविराय' अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निशि दिन चारि, रहत सबही के दौलत।
छंद तीन प्रकार के होते हैं
आइये समझें……………
१ - वार्णिक छंद - ऐसे छंद जिनकी रचना वर्णों की गणना नियमानुसार होती है उन्हें ''वार्णिक छंद ''कहते हैं।
२ - मात्रिक छंद - जिन छंदों के चारों चरणों की रचना मात्राओं की गणना के अनुसार की जाती है उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं।
३ - अतुकांत और छंद मुक्त -ऐसे छंद जिनकी रचना में वर्णों और मात्राओं की संख्या का कोई नियम नहीं होता उन्हें छंद मुक्त काव्य कहते हैं ये तुकांत भी हो सकते हैं और अतुकांत भी।
प्रमुख मात्रिक छन्द -
चौपाई, रोला, दोहा, सोरठा, कुण्डलिया ये मात्रिक छंद हैं
चौपाई -
चौपाई के प्रत्येक चरण में १६ मात्राएँ होती हैं तथा चरणान्त में जगण तगण नहीं होता
उदाहरण - देखत भृगुपति बेषु कराला
२११ ११११ २१ १२२ (१६ मात्रा )
उठे सकल भय बिकल भुआला
१२ १११ ११ १११ १२२ ( १६ मात्रा )
पितु समेत कहि कहि निज नामा
११ १२१ ११ ११ ११ २२ (१६ मात्रा )
लगे करन सब दंड प्रनामा
१२ १११ ११ २१ २२२ (१६ मात्रा )
रोला -रोला छंद में २४ मात्राएँ होती है ग्यारहवीं और तेरहवीं मात्राओं पर विराम होता है अंत में दो गुरु होने चाहिए।
उदाहरण
उदाहरण
'उठो–उठो हे वीर, आज तुम निद्रा त्यागो।
करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो।।
तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो।
भारत के दिन लौट, आयगे मेरी मानो।।
ऽ-।-। ऽ ।-। ऽ-। ऽ-।-ऽ ऽ-ऽ ऽ-ऽ (२४ मात्राएँ)
दोहा - इस छंद के पहले तीसरे चरण में १३ मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में ग्यारह मात्राएँ होती हैं पहले तीसरे चरण का आरम्भ जगण से नहीं होना चाहिए और सम चरणों के अंत में लघु होना चाहिए।
उदाहरण -
आ रही और जा रही, उमड़ घटा घनघोर !
बिजुरी मन चमकत रही, छम छम नाचे मोर!!… ''तनु ''
करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो।।
तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो।
भारत के दिन लौट, आयगे मेरी मानो।।
ऽ-।-। ऽ ।-। ऽ-। ऽ-।-ऽ ऽ-ऽ ऽ-ऽ (२४ मात्राएँ)
दोहा - इस छंद के पहले तीसरे चरण में १३ मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में ग्यारह मात्राएँ होती हैं पहले तीसरे चरण का आरम्भ जगण से नहीं होना चाहिए और सम चरणों के अंत में लघु होना चाहिए।
उदाहरण -
आ रही और जा रही, उमड़ घटा घनघोर !
बिजुरी मन चमकत रही, छम छम नाचे मोर!!… ''तनु ''
सोरठा -छंद के पहले और तीसरे चरण ग्यारह ग्यारह और दूसरे और चौथे चरण में तेरह तेरह मात्राएँ होती हैं। इसमें पहले और तीसरे चरण में तुक मिलने चाहिए। यह विषमान्त्य छंद है
उदाहरण-
रहिमन हमें न सुहाय, अमिय पियावत मान बिनु।
जो विष देय पिलाय, मान सहित मरिबो भलो।।
ऽ ।-। ऽ-। ।-ऽ-। ऽ-। ।-।-। ।-।-ऽ ।-ऽ
कुण्डलिया -कुंडली या कुण्डलिया छंद के शुरू में एक दोहा और उसके बाद इसमें छः चरण होते हैं प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ होती हैं दोहे का अंतिम चरण ही रोला का पहला चरण होता है इस छंद का पहला और अंतिम शब्द भी एक ही होता है। …
आइये समझें
दौलत पाय न कीजिये, सपने में अभिमान।
चंचल जल दिन चारिको, ठाऊँ न रहत निदान।।
ठाँऊ न रहत निदान, जयत जग में जस लीजै।
मीठे वचन सुनाय, विनय सब ही की कीजै।।
कह 'गिरिधर कविराय' अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निशि दिन चारि, रहत सबही के दौलत।
हमने आज मात्रिक छंदों के बारे में समझा प्रतिक्रिया अवश्य हो।
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