उलझी डोर पतंग की , बिखर गये अरमान ;
राह कठिन रे जिंदगी, मैं समझी आसान !
अब बिसूरता मुँह लिये, खो बैठी हूँ होश, ,,
अपने हाथों लुट गई, हुआ न मुझको भान !!.
... ''तनु''
उलझी डोर पतंग की , बिखर गये अरमान ;
राह कठिन रे जिंदगी, मैं समझी आसान !
अब बिसूरता मुँह लिये, खो बैठी हूँ होश, ,,
अपने हाथों लुट गई, किसको दूँ अब दोष !!..
.. ''तनु''
राह कठिन रे जिंदगी, मैं समझी आसान !
अब बिसूरता मुँह लिये, खो बैठी हूँ होश, ,,
अपने हाथों लुट गई, हुआ न मुझको भान !!.
... ''तनु''
उलझी डोर पतंग की , बिखर गये अरमान ;
राह कठिन रे जिंदगी, मैं समझी आसान !
अब बिसूरता मुँह लिये, खो बैठी हूँ होश, ,,
अपने हाथों लुट गई, किसको दूँ अब दोष !!..
.. ''तनु''
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