बहुत सी घातें हैं, इक शक से परे!
बहुत सी बातें हैं, इक हक़ से परे!!
रात अमा की, चाँदनी शायद सो गयी !
और बहुत सी, लतें हैं इकटक से परे!!
शीत की चादर में मुफ़लिसी काँपती !
एक गोशा यहीं है लकदक से परे!!
राह वो पकड़ी कोई होती अगरचे!
तो जीते रिश्तों की झकझक से परे!!
हैं उसी की राहें मंज़िल भी उसी की!
सब कुछ गुज़र जायगा यक-ब-यक से परे !! "तनु"
बहुत सी बातें हैं, इक हक़ से परे!!
रात अमा की, चाँदनी शायद सो गयी !
और बहुत सी, लतें हैं इकटक से परे!!
शीत की चादर में मुफ़लिसी काँपती !
एक गोशा यहीं है लकदक से परे!!
राह वो पकड़ी कोई होती अगरचे!
तो जीते रिश्तों की झकझक से परे!!
हैं उसी की राहें मंज़िल भी उसी की!
सब कुछ गुज़र जायगा यक-ब-यक से परे !! "तनु"
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