नहीं सलीका काम का वो दौर जारी है,
आप के चारों तरफ अनगिन मदारी हैं !
हद जियादा देखना भी इक बीमारी है ,
क्या समझने से बदलती ये आज़ारी है!
ढोलता है ढूध कोई, फैंकता सब्ज़ी ,
खो गये अपने शहर से सारे भिखारी हैं!
कीजिये हमसे पर्दा कुछ तो सलीके से,
झुक कर अदब से सलाम तमीज़दारी है!
जोरु जेब ज़मीन तिजोरी सामने सब है,
नोट सारे गुम हुए अब रेज़गारी है!
छल रहे हैं रहबर, गर्दन भी पकड लेंगे ,
क्या शिकायत "तनु" करे ऐसी लाचारी है!
-----"तनु"
आप के चारों तरफ अनगिन मदारी हैं !
हद जियादा देखना भी इक बीमारी है ,
क्या समझने से बदलती ये आज़ारी है!
ढोलता है ढूध कोई, फैंकता सब्ज़ी ,
खो गये अपने शहर से सारे भिखारी हैं!
कीजिये हमसे पर्दा कुछ तो सलीके से,
झुक कर अदब से सलाम तमीज़दारी है!
जोरु जेब ज़मीन तिजोरी सामने सब है,
नोट सारे गुम हुए अब रेज़गारी है!
छल रहे हैं रहबर, गर्दन भी पकड लेंगे ,
क्या शिकायत "तनु" करे ऐसी लाचारी है!
-----"तनु"
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