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Monday, January 28, 2019

क्यों शजर का तय है नसीबा बहारों में!
क्यों बशर का तय है नसीबा  उधारों में!!

अपना होकर अपना नहीं नसीबा वही!
ज्यों सूखे का तय है नसीबा सहारो में!!

सूख कर नदियाँ सिमटी सिमट रही !
भूल कर जो पराई हो गयी किनारों में!!

आग पानी में भला कब हुई यारियाँ!
साबित सदा यही होता गया अंगारों में!!

देखती "तनु" आँख हालात ग़म ओ खुशी !
आँख बिन रंग-ए-तसर्रुफ़ गुम हुए नज़ारों में!!
-----"तनु"

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