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Wednesday, April 29, 2015


चला अ केला 
मन का साथी मिला 
उड़ान मन 
कंटक हीन पथ 
चले इतरा 

Tuesday, April 28, 2015



नज़राना प्यारा   (दिठौना )

दुलारा  है माता का छौना ;
मीठी - मीठी नींद सोना !!!

दुनिया से प्यारी माँ की गोद ! 
दुनिया से न्यारी माँ की गोद !
सबसे महँगी माँ की गोद !
निर्मल अनोखी माँ की गोद !
दाम लगे  ना औना - पौना ;
आ सोजा बिछा - बिछौना … 


देती माँ खुशियों के पल !
झुकता सृष्टि का खल बल ! 
पहला कदम अंगुली के बल !
होने न दे हमको निर्बल !
न समझ अपने को बौना ;
खो समय क्यों रोते  हो ना …… 


चलना सीखते गिरते कई बार ;
गिरते ! उठाती बार - बार !
सिखाती कभी मानो न हार !
निर्मल  गंगा बहती धार !
दिया है कैसा यह नज़राना ?
 देख कैसा लगा दिठौना ? 


माँ की ममता है नज़राना !
माँ की सीख है नज़राना !
माँ की दृष्टि ही नज़राना !
माँ की सृष्टि है नज़राना !
उसकी आशीष सदा ही लो ना ;
उसके प्यार को कभी न खोना … ''तनु ''

























'ग़ैब का हाल खुदा जाने'



ना--- जानू मैं ,ना तू जाने ;
'ग़ैब का हाल खुदा जाने'!

खुशियों में मीठे गीत गुने;

गाती चिड़ियों को मीत चुने !
जिस भोर को बुलाया मैंने, 
उसी सुबह थे सपने बुने !!

फिर प्रीत हुई यूँ अनजाने ,

 ना -- जानूँ मैं, ना तू जाने !!
 'ग़ैब का हाल खुदा जाने … 

हवा ने हौले से दुलराया;

दामन सपनों का लहराया ! 
फिर प्रीत में मनवा डूबा,
तन झूमा औ मन इतराया !!

  सुनहरा दिन रंगीन शामें,

  ना --  जानूँ मैं,  ना तू जाने !!
 'ग़ैब का हाल खुदा जाने … 

एक दिन भीषण वज्राघात;

रोते मिल कर प्रात औ रात !
होनी  न कहकर है आती, 
बीती ना तमस की वो रात !!

सपने टूट गए सुहावने,  

ना -- जानूँ मैं, ना तू जाने!! 
 'ग़ैब का हाल खुदा जाने , 

ग़म उसका ख़ुशी भी उसकी ;

प्रीत और नफ़रत भी उसकी !
गम से अब क्योंकर है डरना,
 खेवक वो  नैया भी उसकी !!

वो आयेगा पार लगाने ??

ना -- जानूँ मैं, ना तू जाने !!
'ग़ैब का हाल खुदा जाने …

ना जानूँ मैं ना तू जाने !!
'ग़ैब का हाल खुदा जाने … ''तनु ''

















सोयी  रजनी 
रजनीगंधा रूठी 
खोयी सुगंध


आस की प्यास
 पावन अपावन
 मनुज कर्म

 बिखरा नभ 
प्रगल्भ के डर से 
जन चीत्कार

लेती न गोद
वात्सल्य न ममत्व
जननी रूठी

जननी रूठी
जमा खर्च अधूरा
लेती न गोद





ये सब तो बात की बात रही
रही मैं कब आपसे नाराज़ रही
कितना मज़ा मैं रूठूँ और तुम मनाओ
आखिर आप मेरी छोटी बहन रही 
 बिखरा नभ
प्रगल्भ के डर से
जन चीत्कार 

Monday, April 27, 2015

बने अनेक  
आधार जीवन का
एक पंखुरी 



प्रतीक सूर्य 
रंगत बृहस्पति 
सगुण धारी 
फूल हजारा 
सूर्य प्रतीक !
बृहस्पति रंगत !
मधुर गंध मय !!
भू दृश्य सज्जा  !
अनगिन कलियाँ !
मनुहार देव की !!








तुम तो !!
जानते ही नहीं ?
दर्द जो व्यक्त है ,
न कहा मैने,  
जाना कैसे तुमने ?
जो अव्यक्त है …… 

सब तो !!
सोचने ही लगे ?
भक्ति जो भक्त है ,
जान गए सब 
बिखरे हुए ?
ही विभक्त हैं……… 

अब तो !! 
कोई कैसे जाने ?
जो शक्त है ,
कोई दूर चला जाए ?
मन उसके साथ ,
चला जाये ?
बन अशक्त है....... 

छोड़ दो 
माया ममता मोह ?
यहाँ वहाँ जो रत है 
पर कैसे ?
कोई न छोड़ पाये 
मन कर मना ?
बन विरक्त है  ,,,,,,,,''तनु ''

Saturday, April 25, 2015

 भू दृश्य सज्जा 
मनुहार देव की 
सजा आँगन 

 पुष्प हजारा 
लघु कली सुमन 
दिखता प्यारा 

कली अनेक 
सुनहरी सजीली 
गेंदे का फूल। ''तनु ''


जैसे इसकी टोपी उसके सर 
वैसे इसके पाप उसके सर 
करे कोई ------- भरे कोई ??
पालन हारे तू न्याय कर  ''तनु ''

बहती नदिया में हाथ धो लेंगे 
तू कहे तो, --तेरे साथ हो लेंगे 
बाद ये न कहना न्याय न हुआ 
बीज तो बीज है हम पेड़ भी बो लेंगे ,,. ''तनु ''

पूज्य बापूजी  (मेरे दादाजी) को,

उनकी याद में बनारस !
उनके बाद में बनारस !!
उन्हें बहुत याद करता है 

स्वप्न में जो गीत रचा है,---- मैं तुमको सुनाता हूँ ,
घाट पर ले तबला मृदंग,------ मैं तुमको मनाता हूँ ,
किस दुनिया में रहते ''बापूजी'' जो दिखते भी नहीं !!
श्रृद्धा सहित विनत हूँ आज,-- मैं तुमको बुलाता हूँ ; .... ''तनु ''

सुनहरे ख्वाब के परिंदे  ,         रूठे हुए हैं !         
दरख़्त आशा औ प्यार के ,      टूटे हुए हैं !!
माँ का आँचल और वात्सल्य ढूँढता हूँ,
नींव नहीं ध्रुव करुणा के ,       झूठे हुए हैं !

Friday, April 24, 2015

ऊँचा चढ़      पर इतना ना ;
जहां से सूझे नीचे कुछ ना! 
ऊँचा हो तो खुदा सा होना ;
सबको कर शर्मिन्दा ना !!....

धवल वस्त्र हैं काले काम ;
लगता पाया  बड़ा ईनाम !
पाई पाई तब  होगी वसूल ????
पहुँचोगे जब उसके धाम ,,

कैसी है ये खोज सत्य की ?
बीते यहाँ वीभत्स सत्य की ?
अंतर्मन की ये गवाही कैसी ?
पल पल मृत्य सत्य असत्य की !!!… ''तनु ''

Thursday, April 23, 2015

दुहनन दहन दाह दशा ,  ------   दहना दाहन दाह ;
नियमन नियम नीति यहाँ  , नियंता निय नियाव !
तुम इला, इड़ा 
धरित्री तुम ही। 
तुम पालक, तुम सृजक 
तुम गणेश सी ,
प्रथम पूज्य 
हो। 

तुम उपवन, तुम वन कानन
तुम कुसुम
तुम सिंदूर, तुम महावर 
तुम हीना सी 
पावन महक
हो। 

तुम जीवन, तुम मधुबन
तुम रचेता ,
तुम प्रणेता, तुम अवसान 
अवगाहन तुम ही। 
तुम सृष्टि सी, 
स्वजन सजन 
हो। 
कैसा मतवाला दरदर भटक रहा हुआ दर हीन ?
मत कहो मत वाला हुआ मत के  कारण दीन ,
अधिकार पाया कर्तव्य की कश्ती में हुआ छेद !
अधिकार जताते भूल रहे कर्तव्य ये धनलीन!!..''तनु ''
वो 
जिसे कहते हैं 
''किताबी कीड़ा ''
आज कोई नहीं दीखता ;
उठाये
जो जहमत कर
बीड़ा ---- 
आज कोई नहीं दीखता !
श्वास श्वास,
खास ,
बात और आस 
तब किताबें ही थी,
उठाये 
जो
राम सी पीड़ा --------  
आज कोई नहीं दीखता !!
आँखों में बदरी लिए बैठे हैं
रोते से चेहरे लिए बैठे हैं
हमारा गुनाह शर्म सार भी हम
काली सी रातें लिए बैठे हैं 
रोटी चली गयी सिगड़ी चली गयी 
दमड़ी चली गयी, चमड़ी चली गयी 
अब कंकाल चमकने दमकने दो भाई 
आकर नथुनों से साँस भी चली गयी,,,,''तनु ''

Tuesday, April 21, 2015




कलम भी मचल कर हँस रही ;
फाइलों पर मुट्ठी कस रही !
सोचने पर विवश है हम यहाँ; 
अज्ञानता हमें क्यों डस रही !!''तनु ''

ये  ना मालूम सी जलन है 
कोई तो बताये ये अगन है ??
कहीं जल कर दाग पड़ते हैं 
कहीं दागों में ये जलन है ''तनु ''
ग़मों को क्यों बारहा मन ही मन दोहराता है ----- ये आदमी ! 
लतीफ़ो को दोबारा सुन कर नहीं हँसता है --------ये आदमी !!
सुखद यादों में गोते लगाता कभी मन ही मन रोता है,
आहें भर, बूढी, किलकारियों में जीता है ----------- ये आदमी,…''तनु '' 

Monday, April 20, 2015

पीटो पीटो ''काहल'' , ----   कोलाहल करेगा ,
पत्रिका का ''काहल योग'' ,  शुभ फल करेगा ?
क्या हल हीन है वो हलधर का भाई ???
उबारेगा, धारेगा, कभी तो हल का हल करेगा !!!…''तनु ''

आखर चुन लो 

काल चक्र को
 कैसे मोड़ें ?
नैन कैसे जुड़े ? आखर से … 
कौन पढ़े ?
??
कह सके ना,  अपनी बात !!!
पन्नों के ,
कैदी !!!

ये निर्दोष हैं 
व्यवहार से कार्य से 
कौन सुने उनकी ?
कोई न जा सका 
??
मोती ढूँढने 
बहुत गहरे 
कोई तुम सा 
धृति !!!

मुक्त करने तुम्हे ,
ज्ञान भरने तुममें 
चाहते 
बहुत कुछ कहना तुमसे
खोजना , छुपा हुआ !
??
पता है !
इन पुस्तकों में …
जाओ न ,
गैदी !!!

खो जाओ इनमें ,
उठाओ बीड़ा !!!
बन के कीड़ा  इनका 
पा लो ,
जो इनमें है छुपा
नन्हों!!!
किताबें भी माँ हैं 
??
छिपो आँचल में 
चढ़ो ज्ञान की 
पैड़ी !!!


कहाँ है अंत ?
किसका ?
ज्ञान का ? पाये न पार ,
देखो छूट न जाना,
 मझधार…
??
हाँ मैं कहूँगा
 तुम कहोगे 
सब कहेंगे 
नेति !!! 












Saturday, April 18, 2015


तुम तो 
जानते ही नहीं 
दर्द जो व्यक्त है ,,,,
न कहा 
जाना कैसे तुमने ?
जो अव्यक्त है ,,,,,,,,,''तनु ''
दें गर नसीहत किबला,  खुद भी अमल कीजिये !
शोर दिल में है कितना,  जिद भी असल कीजिये !! 
पकते रहेंगे ख्याली पुलाव यूँ दर रोज़ ही ,,,,,,,,
है घट अधजल छलकता,  खुद भी अकल कीजिये !!!''तनु '' 

अकल = पूरा, सम्पूर्ण 




चरित्र ऐसा कि, बात बात से सीख लीजिये ;
बोल ऐसे कि,   घुली हुई मिश्री सी लीजिये ! 
ये ठाड़े हैं,   व्यवहार के इस बाज़ार में , 
साँच की कीमत, बड़ी है झूठ हार लीजिये  !!

Thursday, April 16, 2015

नानी सी क वात ……… 

सफई घर री सफई आँगणा री 
सफई उखेड़ा री सफई बाडा  री 
प्रकृति ''वणी'' री सफई वारा बी ''वणी'' रा 
कारो है हिवड़ो सफई चावै  हिवडा री 
सफाई जमीं की सफाई आसमां की  
सफाई गुलशन की सफाई बियाबां की 
प्रकृति ''उस ''की सफाई कर्मी भी ''उसी '' के 
काला है  दिल चाहिए सफाई गरेबां की,,,     ''तनु ''



दिल की बात कह, सुनने सुनाने की गुजारिश लिए;  
 छाई हैं बदलियाँ,   बरसने की चाह नवाजिश लिए !

दिल अब क्यों चला है शहर की रंगीनियों से दूर ?
 चमकती सी याद है चली आती है साजिश लिए !

चमन में डालियाँ फूलों की झुक गयी बेसाख्ता ; 
 नया ख्वाब, दिल अब है सज रहा, गम-ओ-गर्दिश लिए ! 

टूटे ख़्वाब ,ज़ख्म न थे, न दाग रहे मेरे दिल में ;
 खुद ही के उस्लूबों को सजा लो छुपी रंजिश लिए !

शब  तन्हा कभी थी औ न ही होगी कभी ए दिल ;
 ख़्वाब कच्चा नहीं, झूठा नहीं , कोई खालिश लिए ! 

Tuesday, April 14, 2015


छन छन छनक रही पायल, ---- मगन इक दिल सुनाता है ,
उनींदी चाँदनी में ही,  ---------- सपन इक मिल सजाता है !  
उज्जवल भानु सी राधा, ----------- सलोनी साँझ सी राधा  !!!
मुरलिया कान्ह बजाते, -------  कमल इक खिलखिलाता है ,.....''तनु'' 
कूजति कोकिल कानन सुन, ----- मगन इक दिल सुनाता है 
कान्ह कान्ह कह कान्ह,  -------- सपन फिर मिल सजाता है !
राधिका भानु सी सजनी , -------- सलोनी साँझ सी सजनी !!!
राधे राधे सुन राधे  , -------------  कमल इक खिल बुलाता है ,.... ''तनु''

Monday, April 13, 2015

तू ही निगहबाँ शान लिए बैठा हूँ ;
तुझसे रब्त   पनाह लिए बैठा हूँ !

दीन की जानिब  रुख कीजिये ;
मैं तस्सवुर को सम्हाल बैठा हूँ !

एहसास तकानों के सलामत रहें ;
मैं तुझी को रफ़ीक मान बैठा हूँ !

साज़ में पर्दे की खनक बाकी रहे ; 
मैं साँसों को निगाह दिए बैठा हूँ !

वक्त सदा ही रहा इम्तहानों का ; 
हर माहौल में अज़ान लिए बैठा हूँ !

Saturday, April 11, 2015



रास रस धारा संग, बह गए कन्हाई हैं ! 
साध रस राधा संग, सध गए कन्हाई हैं !! 
बरसाने की राधा,  बरसा साध आधी है ,
कित है तू और बता, कित गए कन्हाई हैं !!! …'' तनु ''


झंझावातों के थपेड़े,           झुके मन की आशाओं के झाड़ !
नन्हा अंकुर पकड़े ज़मीं,           कोई आतंकी ना दे उखाड !
टूटे ना हिम्मत माने ना हार आँधी और तूफानों से !!!
आ गये किरणों के पाखी,          रुके गम के अंधेरों के लाड ! 
झंझावातों के थपेड़े,           झुके मन की आशाओं के झाड़ !
नन्हा अंकुर पकड़े ज़मीं,           कोई आतंकी ना दे उखाड !
टूटे ना हिम्मत माने ना हार आँधी और तूफानों से !!!
आ गये किरणों के पाखी,  ना होगा गम ना तिमिर के लाड !


Monday, April 6, 2015


              तपस्वी हैं वे जो बिन मुखौटों के जिए जाते हैं , 
              जो संत हैं सदा एक सा जीवन जिए जाते है !
              मुखौटों का नकली जीवन बस एक दो दिन ही का,,,,
              धरम पथ पर गतिमान पावन दीपक जलाते हैं !!!,,,''तनु ''
       

Sunday, April 5, 2015

बूँद बूँद चाँदनी नहीं,....  मृगतृष्णा का घूँट ,
ये किस करवट को बैठ गया , जीवन मरु का ऊँट ?
वाणी है मौन, प्रश्न गौण , एषणाएँ धूसरित !!!............
मलमल सी जिन्दगी में पैबंद लगा रहा जूट,,,,,,,,,,
हृदय में धारे रहें , ------------  मन भाते हनुमान !
सब कामना सिद्ध करें ,  जय जय जय हनुमान !!

Saturday, April 4, 2015

कविता चपला सी कौंधती ,जब हाथ कलम न होता, 
कविता बन बिरह सी होती ,जब साथ सजन न होता !
चल पड़ी अभिसारिका चाह अब अवगुंठन की कहाँ ,
हृदय में अंकित तिमिर सी, जब प्रात जनम न होता !!,,,, ''तनु ''
देख लो !!! ये लालन को, सिंदूर से नहाय हैं ,
पास है ''सोटा'' धरे,  दैहिक दुख ये भगाय हैं !
राम ही को उर रखे ,  राम भक्त ये कहाय हैं, 
राम चरण में नित रत , लौ राम जु से लगाय हैं !!   

Friday, April 3, 2015

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चित्र पर कविता 

नन्हे गदहे,
प्यारे गदहे!!!
उछ्वास न छोड़,
 दुखी न हो !
तू नहीं अकेला ,
चल उधर डग है ,
डग है !!!
आज में रह नन्हे,
 आज में जी!
विज्ञ बन, 
अज्ञ नहीं !!!
यही अद्य है ,
अद्य है!!! .....
प्रेम का पद्य,
वात्सल्य का पद्य!
मेरा प्यार सदा,
तेरे साथ रहेगा!
तू आया ,
अभी सद्य है,
 सद्य है !!!
मैं समझा दूँ तुझे,
दुनिया की रीत!
पेट भरने के लिए,
करना मेहनत !
तुम!!!
ये गद्य  है,
गद्य है !!!
मोह न कर ,
अश्रु न बहा!
जीवन से प्रीत कर, 
उदास न हो !!!
यही समर्थ का,
यज्ञ है ,
यज्ञ है !!!,,,,


Thursday, April 2, 2015


संयम, संस्कार हो संगत हो असंगत न हो !
प्राण हो कोमलता हो हया हो कुसंगत न हो !!
यशोगान हो मानवता काऔर गंभीर सोच हो, 
साहित्य मरे न ! जिए कविता शरणागत न हो !!!,,,''तनु''

Wednesday, April 1, 2015

कविता 
मन भावों का ,
सागर है !
कविता उसमें , 
 एक बूँद सी !!!
मन उद्यानों का,
 एक सुमन! 
कविता उसमें ,
 एक महक सी !!!
मन तरुणाई की, 
एक साँझ !
कविता उसमें,
 यौवन सी !!!
मन जीवन की,
 ख़ुशी लिए !
कविता उसमें,
 एक गीत सी!!!
मन प्रीतम का,
 गीत लिए! 
कविता गुनगुन,
 भौंरे सी!!! 
मन बारिश,
 की एक बूँद !
कविता भावों के,
 सागर सी !!!
मन प्रीत रीत के,
 सजल भाव !
कविता झर झर,
  झरनों सी!!! 
मन सपनों की.
 मीठी मुस्कान!
कविता मूँद नयन,
सोयी सोयी सी!!! .... ''तनु ''
छंद पियूष वर्ष छंद  पर आधारित  :-
विधा परिचय  -   यह एक भारतीय सांस्कृतिक छंद है जिसमे १९ वर्ण  एवं ४ पद होते हैं तथा ३-१०-१७ पर लघु वर्ण अनिवार्यत: रखना होता है , संस्कृत रचना में पदांत की अनिवार्यता नहीं होती परन्तु हिंदी तथा देसज में पदांत हो तो सौन्दर्य का बोध कराते हैं।
***********************************


                        १                        

 मान ! बल ! उद्वेग ! सागर ही रहा , 
 है मयंक पूनम नभ दिख ही रहा ! 
 हैं खिलाडी द्वय  !!! जीवन खेल था  
 एक उलझ ज्वार , उन्नत ही रहा !!...
                           
                         २ 

खेल लिया अब , चल !!! धो हाथ मुँह दूँ 
धो कर तेरी थकन रत्नाकर  दूँ !!!
हो न ऐसा माँ  तुझको डाँट रही   ,,,,,,,,,,,
तू कहीं न हो चुप , लो मैं रो न दूँ!! 



                         3  
याद आवे री बरसाने जन की !!! 
वृषभानु आँगन झनक रुनझुन की  !!!              
याद आवे झूलत मन मोहन की,
बाँसुरी टेर सुन राधे गुनन की !!!……