Labels

Thursday, April 16, 2015

दिल की बात कह, सुनने सुनाने की गुजारिश लिए;  
 छाई हैं बदलियाँ,   बरसने की चाह नवाजिश लिए !

दिल अब क्यों चला है शहर की रंगीनियों से दूर ?
 चमकती सी याद है चली आती है साजिश लिए !

चमन में डालियाँ फूलों की झुक गयी बेसाख्ता ; 
 नया ख्वाब, दिल अब है सज रहा, गम-ओ-गर्दिश लिए ! 

टूटे ख़्वाब ,ज़ख्म न थे, न दाग रहे मेरे दिल में ;
 खुद ही के उस्लूबों को सजा लो छुपी रंजिश लिए !

शब  तन्हा कभी थी औ न ही होगी कभी ए दिल ;
 ख़्वाब कच्चा नहीं, झूठा नहीं , कोई खालिश लिए ! 

No comments:

Post a Comment