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Kaavya
Tuesday, April 28, 2015
आस की प्यास
पावन अपावन
मनुज कर्म
बिखरा नभ
प्रगल्भ के डर से
जन चीत्कार
लेती न गोद
वात्सल्य न ममत्व
जननी रूठी
जननी रूठी
जमा खर्च अधूरा
लेती न गोद
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