तू ही निगहबाँ शान लिए बैठा हूँ ;
तुझसे रब्त पनाह लिए बैठा हूँ !
दीन की जानिब रुख कीजिये ;
मैं तस्सवुर को सम्हाल बैठा हूँ !
एहसास तकानों के सलामत रहें ;
मैं तुझी को रफ़ीक मान बैठा हूँ !
साज़ में पर्दे की खनक बाकी रहे ;
मैं साँसों को निगाह दिए बैठा हूँ !
वक्त सदा ही रहा इम्तहानों का ;
हर माहौल में अज़ान लिए बैठा हूँ !
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