कविता चपला सी कौंधती ,जब हाथ कलम न होता,
कविता बन बिरह सी होती ,जब साथ सजन न होता !
चल पड़ी अभिसारिका चाह अब अवगुंठन की कहाँ ,
हृदय में अंकित तिमिर सी, जब प्रात जनम न होता !!,,,, ''तनु ''
कविता बन बिरह सी होती ,जब साथ सजन न होता !
चल पड़ी अभिसारिका चाह अब अवगुंठन की कहाँ ,
हृदय में अंकित तिमिर सी, जब प्रात जनम न होता !!,,,, ''तनु ''
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