बहुमंजिला इमारतें , संग लिफ्ट के झूल !
हुए पेड़ गायब जहाँ, आँगन भी जा भूल !!
बाढ़ ले सावन सहता, बहते मानव ढोर !
जब बगीचा नहीं रहा, क्या गायेंगे मोर !!
जाय कहाँ हम झूलने, ख़तम हुए रिवाज !
मददगार ही लूटता, खोय गयी परवाज !!.. ''तनु''
हुए पेड़ गायब जहाँ, आँगन भी जा भूल !!
बाढ़ ले सावन सहता, बहते मानव ढोर !
जब बगीचा नहीं रहा, क्या गायेंगे मोर !!
जाय कहाँ हम झूलने, ख़तम हुए रिवाज !
मददगार ही लूटता, खोय गयी परवाज !!.. ''तनु''
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