सफर आसां कहाँ था मैं डगर को छोड़ आयी हूँ !
कभी जो सींचती थी उस नज़र को छोड़ आयी हूँ !!
पस्त लाचार हूँ ग़मगीनियाँ भी सर से पैरों तक !
कहीं जाऊँ न हार डर से समर को छोड़ आयी हूँ !!
सबा मुझको मिली थी बिछड़ कर रूठी कहाँ जाने !
लुभाती जो कभी थी उस सहर को छोड़ आयी हूँ !!
शुबह था बे -नियाज़ी भी उसी सैयाद की ही थी !
जहाँ होता परिन्दों का शजर को छोड आयी हूँ !!
किसी खुलते झरोखे की आँख में डर का साया !
दहशतें इतनी बलवों की शहर को छोड़ आयी हूँ !!
कब ढहेंगी दहशतें और कब जलेंगे बुझे दीये !
कब ढहेंगी दहशतें और कब जलेंगे बुझे दीये !
इबादत की राह मैं जलते शरर को छोड़ आयी हूँ !!
कहोगे जब, चली आओ 'तनु', निगाहें राह हैं तकती !
तुम सदा देना बहारों मैं असर को छोड आयी हूँ !!... ''तनु''
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