Labels

Tuesday, November 8, 2016





आपकी याद दिलाता है कोई ;
काँटों के जंगल उगाता है कोई !

आब और आग के इस दंगल में ;
मुझको खींचे लिए जाता है कोई !

साँस घुटती है की नब्ज़ रुकती है; 
बेहोश हूँ मुझको जगाता है कोई !

आसमा ग़मगी ज़मी मरती हुई ;
आइना मुझको दिखाता है कोई !

कर करिश्मा ऐसा निजात मिले ;
अब कहाँ जाता है न आता है कोई !

खींच कर ओढ़ लूँ सिंदूरी चादर ;
मुझको तनहा किये जाता है कोई ! ... तनुजा ''तनु ''


No comments:

Post a Comment