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Saturday, November 12, 2016
कंचन काया बुत बनी , कैसा ये अन्याय !
बोझ जिंदगी का सहे, कोई नहीं सहाय !!
कोई नहीं सहाय, भाग्यहीन है सुत भी !
जीवन का अभिप्राय, सिर्फ विपदा अटूट ही !!
कैसा ये व्यापार, नित्य ही अभिनय मंचन !
कौ सुने रे पुकार , धूल में काया कंचन !!,...तनुजा ''तनु''
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