मनाऊँ मैं उमा सुत को
सजाकर दीप थाली में , पुराकर मोतियों आँगन !
अक्षत रोली मिठाई ले , जला कर्पूर औ चन्दन !!
तुम प्रथम पूजित सकल देव भी तुमको मनाते हैं !
मनाऊँ मैं उमा सुत को, करूँ पूजन स्नेह सिंचन !!
तुम मयूरेश के भ्राता, तुम्ही हो ज्ञान के दाता !
बिना तुम कैसे हो पाये, कभी भी सार्थक चिंतन !!
चढ़ाकर माल दूर्वा की , करूँ मन वांछना पूरी !
पधारो देव साजो काज, कर जोड़ूँ करूँ वंदन !!
बनाये भोग मोदक ही, यही अति हैं तुझे भाते !
लगाओ भोग लम्बोदर, करो अंगीकार अभिनन्दन !!
कमी मुझमें अनेकों हैं, सदा दुष्कर्म में डूबा !
मलिन मुख मैं गुण विहीना,भवतरा दो मैं अकिंचन !!... तनुजा ''तनु''
No comments:
Post a Comment