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Monday, November 21, 2016




ये किसने
जला दी  मशालें  
कितने मज़बूत हाथ 
इनको सम्हाल 
रहे हैं 
ये शहर 
ये बस्तियाँ 
सब तो थी 
सोई सी , ,,

एक चिंगारी 
थी जो छुपी 
वही संकल्पित 
 सोच चिंगारी 
लपट है अब 
नहीं दिखेगी 
किसी  की शक्ल 
रोई सी , ,,

रात के बाद 
सूरज है 
देखो न 
आग भी यूँ ही
 नहीं लग जाती 
कोई चिंगारी 
रही 
इसमें खोई सी , ,,

खुलेंगी बातें 
आसमा 
ज़मीन की 
परतों में 
लावा तपता 
उठा कर 
कसम दे रहा 
गोई सी, ,, 

न चुप रहो 
मौन खोलो 
कह ही डालो 
सब सुनेंगे 
और चल पड़ेंगे 
साथ लिए 
मशाल जिनको 
सम्हाले मज़बूत
 हाथ 
कह गए
जोईसी !!,,...तनुजा ''तनु''



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