ये किसने
जला दी मशालें
कितने मज़बूत हाथ
इनको सम्हाल
रहे हैं
ये शहर
ये बस्तियाँ
सब तो थी
सोई सी , ,,
एक चिंगारी
थी जो छुपी
वही संकल्पित
सोच चिंगारी
लपट है अब
नहीं दिखेगी
किसी की शक्ल
रोई सी , ,,
रात के बाद
सूरज है
देखो न
आग भी यूँ ही
नहीं लग जाती
कोई चिंगारी
रही
इसमें खोई सी , ,,
खुलेंगी बातें
आसमा
ज़मीन की
परतों में
लावा तपता
उठा कर
कसम दे रहा
गोई सी, ,,
न चुप रहो
मौन खोलो
कह ही डालो
सब सुनेंगे
और चल पड़ेंगे
साथ लिए
मशाल जिनको
सम्हाले मज़बूत
हाथ
कह गए
जोईसी !!,,...तनुजा ''तनु''
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