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Wednesday, July 25, 2018




रीति इच्छा की गगरी, पल पल बिखरी चाह !
लालसा को समेट कर,    ख़ुशियाँ भूले राह !!

चाह जहाँ राहें खुले,   मनु कैसा अनजान !
कोशिश बिन बैठा रहे ,समझे ना नादान !!

कामना है पुष्प खिले, जीवन में अनुराग !
पूरी हो मंशा सभी,       पाऊँ ऐसा भाग !!

मन की इच्छा पीर सी,नित ही मन को मार !
माना कि यह ठीक नहीं,  पूरी हो तो सार !!

दमन कर सारी इच्छा,  बन निर्मोही संत !
पर इच्छा मरती कहाँ, मुश्किल ऐसा पंथ !!

बूढी मेरी लालसा,  रोज़ नई है चाह ! 
कैसे इसे लगाम दूँ, सोच न पाऊँ राह !!

जीवन मिले न चाह से, चाह मिले ना मौत !
जनम मरण मिलता नहीं, छिड़के नीर कठौत !!

मेरी चाह ने पकड़ी, अंध कूप की घाह !
ज्यों मणि माल से मणके, बिखर गये हैं राह !!

गंगा आये चाह से ,    आये जीवन मौत   !
ऐसा नीर मनुज यहाँ,  मिलता नहीं कठौत !!... ''तनु''


                               







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