रीति इच्छा की गगरी, पल पल बिखरी चाह !
लालसा को समेट कर, ख़ुशियाँ भूले राह !!
चाह जहाँ राहें खुले, मनु कैसा अनजान !
कोशिश बिन बैठा रहे ,समझे ना नादान !!
कामना है पुष्प खिले, जीवन में अनुराग !
पूरी हो मंशा सभी, पाऊँ ऐसा भाग !!
मन की इच्छा पीर सी,नित ही मन को मार !
माना कि यह ठीक नहीं, पूरी हो तो सार !!
दमन कर सारी इच्छा, बन निर्मोही संत !
पर इच्छा मरती कहाँ, मुश्किल ऐसा पंथ !!
बूढी मेरी लालसा, रोज़ नई है चाह !
कैसे इसे लगाम दूँ, सोच न पाऊँ राह !!
जीवन मिले न चाह से, चाह मिले ना मौत !
जनम मरण मिलता नहीं, छिड़के नीर कठौत !!
जीवन मिले न चाह से, चाह मिले ना मौत !
जनम मरण मिलता नहीं, छिड़के नीर कठौत !!
मेरी चाह ने पकड़ी, अंध कूप की घाह !
ज्यों मणि माल से मणके, बिखर गये हैं राह !!
गंगा आये चाह से , आये जीवन मौत !
ऐसा नीर मनुज यहाँ, मिलता नहीं कठौत !!... ''तनु''
गंगा आये चाह से , आये जीवन मौत !
ऐसा नीर मनुज यहाँ, मिलता नहीं कठौत !!... ''तनु''
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