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Wednesday, July 18, 2018

बंजर हूँ, कहीं कुछ उपजता ही नहीं,

बंजर हूँ,  कहीं  कुछ उपजता ही नहीं, 
क्या लिखूँ ए दिल कुछ जँचता ही नहीं !

गयी बहार जुल्फ ने खुश्बुएँ खोयी,
 जिंदगी एकसा कुछ रहता ही नहीं !

एक उम्मीद थी दिल के मुआमले में,
पर टूट गया है कुछ सहता ही नहीं !

घर जला की कितनी फैली रौशनी,
रात रौशन दिन कुछ कहता ही नहीं !

गले कौन लगाये नहीं कोई राजदाँ ,
आबशार सा कहीं कुछ बहता ही नहीं !... ''तनु''

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