बंजर हूँ, कहीं कुछ उपजता ही नहीं,
क्या लिखूँ ए दिल कुछ जँचता ही नहीं !
गयी बहार जुल्फ ने खुश्बुएँ खोयी,
जिंदगी एकसा कुछ रहता ही नहीं !
एक उम्मीद थी दिल के मुआमले में,
पर टूट गया है कुछ सहता ही नहीं !
घर जला की कितनी फैली रौशनी,
रात रौशन दिन कुछ कहता ही नहीं !
गले कौन लगाये नहीं कोई राजदाँ ,
आबशार सा कहीं कुछ बहता ही नहीं !... ''तनु''
क्या लिखूँ ए दिल कुछ जँचता ही नहीं !
गयी बहार जुल्फ ने खुश्बुएँ खोयी,
जिंदगी एकसा कुछ रहता ही नहीं !
एक उम्मीद थी दिल के मुआमले में,
पर टूट गया है कुछ सहता ही नहीं !
घर जला की कितनी फैली रौशनी,
रात रौशन दिन कुछ कहता ही नहीं !
गले कौन लगाये नहीं कोई राजदाँ ,
आबशार सा कहीं कुछ बहता ही नहीं !... ''तनु''
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