कौन पढ़ेगा मौत को, यह सावनी फुहार ?
नीर मुँह का सूख गया,यम का पहना हार !!
सरल रूप में अगर हूँ, मैं मनुष्य का प्राण !
अनंत असीम छू रहा, पा शरीर से त्राण !!
मौत ही तो नहीं मरे, मरे सकल संसार !
शास्वत सत्य है यही, झूठ सब व्यवहार !!
आये गये अबूझ है, सभी नर और नार !
श्रृंगी भृंगी भी गये, छोड़ जगत का सार !!
जाने वाला जायगा, चाहे दिन या रात !
जीमे रोज़ मिठाइयाँ, चाहे खाये भात !!... ''तनु''
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