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Sunday, May 10, 2020

खुद ही उसने था जताया अपनी आहों से

खुद ही उसने था जताया अपनी आहों से !
डर दिखाया था सभी को इन निगाहों से !!

राह तो मंज़िल से बहुत ही दूर को जाती!
क़ाफ़िला रुकता गया क्यों इन्ही राहों से !!

कह रहा था ख़्वाहिशों का ओर- छोर नहीं !

के हमेशा बच रहना तुम इन गुनाहों से !!

दिल फ़िगार लगा होने टूटती सरपरस्ती !
क्यूँ अचानक मैं गिरा हूँ तेरी पनाहों से !!

अब नया ग़म देखना नहीं, कुछ नया करके !

सीख लेना था अब तक अपने गुनाहों से !!

बैठते शाम- ओ - सहर और करते क्या हो ??

ख्वाहिशें नाशाद हैं इतनी कराहों से ?

आज चलिए चलकर जरा देख 'तनु' लें हम !

बाज़ुओं में दम से इतर दम कितनी बाहों से !!... ''तनु''

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