Labels

Monday, May 11, 2020

मन डोर रही इस बंधन की,

मन डोर रही इस बंधन की,
अब अंगुलि नाच नचावत है!
तन भी अब तो उस ओर चला,
अब डोर पिया बन जावत है!
कजरा, गजरा, सब है नकली,
जिन देख जिया ललचावत है, ,,
हम काठ रही पर प्राण भरी,
हम ही पुतली कहलावत है!!... ''तनु''

No comments:

Post a Comment