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Monday, May 4, 2020

ज़ख़्म बहते मेरे तमाम, पर मैं घायल कहाँ !

ज़ख़्म बहते मेरे तमाम, पर मैं घायल कहाँ !
खो गए सारे निजाम, अब वे मसायल कहाँ !!

उठ गया है यकीं, इंसा से इंसा दूर है !

ये कैसा जहान ?? कोई अब कायल कहाँ !!

गूँजती खामोशियाँ इस तरह क्या खोजना ??

मिट गए सारे निशान, अब कोई फ़ाज़िल कहाँ !!

सूखती सारी नमी सारे जज़्बे खो गये !
कर गया जो पानी पानी, अब वो बादल कहाँ !!

दिल फ़िगार हुई फ़िज़ा नहीं आएगी कभी !

नहीं दरख्त, खनकती पत्तियों की पायल कहाँ !!

कौर मुँह का देकर बचाते सभी बलाओं से !
सारे सयाने हुए बेकार अब कोई पागल कहाँ !!... ''तनु''



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