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Wednesday, March 18, 2015

एक सफर का सिफ़र 

कुरेद लो यूँ ग़ज़ल मेरी,   न वज्न है न बहर है ;
अल्फ़ाज़ हैं टूटे फूटे से, अंदाज़ कुछ तो मगर है !

निगाह में कोई पढ़ गया कोई कशीदा गढ़ गया ;
है फज़ा बदली बदली सी, पढ़ा लिखा हर शहर है !

कुछ दोस्ती के गीत हैं और मन भाते मीत हैं ;
सुहानी है मुस्कुराती है गाती हुई सी सहर है !

ज़ख्म न दिखाओ, बेसाख्ता आँख न भर लाओ ;
रंगीन हैं प्याले सब यहाँ,  हम प्याले में ज़हर है !

बात की बात हो, बात इतनी सी हो, इतनी न हो ;
नतीजा सिफर हो भूले डगर हो कर लेना सबर है !! …''तनु ''











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