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Thursday, March 19, 2015

ये
सदा है
खुशियों की
नगमा
दिल का
कुसुम भावों के
चुनता
दुनता रहा,,,


मैं
सृजन हीन
दिल पत्थरों के
देखता
गुणता
सुनता रहा ,,


ये
उड़ते गेसू
लहराता आँचल
सपने
केशरिया
बुनता रहा ,,,


देखा
दरिया सा
लहराया है
उनके
कदमों तले
मुस्काकर !!!
ठुनता रहा 


अब
क्यों न 
छू लूँ
उसी आसमां को
जिसे
मन ही मन
चुनता रहा 

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