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Monday, March 23, 2015

शाम फिर ढलती ही क्यों ये एक दर्द लिए!!!
रात फिर पलटी ही क्यों ये एक पर्त लिए !!!
इन्तजार तुम्हारा फिर चाँद के साथ,,,,,,,,,,
और जलते ही क्यों संग मेरे ये बेदर्द दीये !!!....... ''तनु ''

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