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Saturday, March 14, 2015

चाँद अब वैसा न रहा ………

क्यों तुम नज़र आते नहीं,  चाँद में अब वो बात कहाँ ;
फिर झुरमुट मुस्काता नहीं, अब चाँद में वो बात कहाँ !

आबला-पा कबसे हूँ, ………  और दूर अपने घरौंदे से;

चाँदनी मरहम लगाती नहीं, अब चाँद में वो बात कहाँ !

मशरिक़ से मग़रिब तक,  ये चश्मों की शिकायत है;

क्यों अक्स बेनूर बिखरा ?? हाँ उसमें अब वो बात कहाँ !

शोला है, दश्त का सीना और तश्कीक के नेजे !

ये कतरनें हैं सितारों की, चाँद में अब वो बात कहाँ !!

अल्फाज़ में चेहरे कहाँ हैं ,  सदाएँ खामोशियों की है !!!
''तनु''अहद -ए- तहजीब में, पर चाँद में अब वो बात कहाँ !…''तनु ''

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