चाँद अब वैसा न रहा ………
क्यों तुम नज़र आते नहीं, चाँद में अब वो बात कहाँ ;
फिर झुरमुट मुस्काता नहीं, अब चाँद में वो बात कहाँ !
आबला-पा कबसे हूँ, ……… और दूर अपने घरौंदे से;
चाँदनी मरहम लगाती नहीं, अब चाँद में वो बात कहाँ !
मशरिक़ से मग़रिब तक, ये चश्मों की शिकायत है;
क्यों अक्स बेनूर बिखरा ?? हाँ उसमें अब वो बात कहाँ !
शोला है, दश्त का सीना और तश्कीक के नेजे !
ये कतरनें हैं सितारों की, चाँद में अब वो बात कहाँ !!
अल्फाज़ में चेहरे कहाँ हैं , सदाएँ खामोशियों की है !!!
''तनु''अहद -ए- तहजीब में, पर चाँद में अब वो बात कहाँ !…''तनु ''
क्यों तुम नज़र आते नहीं, चाँद में अब वो बात कहाँ ;
फिर झुरमुट मुस्काता नहीं, अब चाँद में वो बात कहाँ !
आबला-पा कबसे हूँ, ……… और दूर अपने घरौंदे से;
चाँदनी मरहम लगाती नहीं, अब चाँद में वो बात कहाँ !
मशरिक़ से मग़रिब तक, ये चश्मों की शिकायत है;
क्यों अक्स बेनूर बिखरा ?? हाँ उसमें अब वो बात कहाँ !
शोला है, दश्त का सीना और तश्कीक के नेजे !
ये कतरनें हैं सितारों की, चाँद में अब वो बात कहाँ !!
अल्फाज़ में चेहरे कहाँ हैं , सदाएँ खामोशियों की है !!!
''तनु''अहद -ए- तहजीब में, पर चाँद में अब वो बात कहाँ !…''तनु ''
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