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Monday, March 23, 2015

ये जो शाम कर देता है कोई क्यूँ नाम किसी के;
जज्बे में इतनी रिफ़ाक़त क्यूँ बेकाम किसी के !

गुल बिखरे बिखर गए मुकद्दर था उनका ;
नामालूम सियासत है क्यूँ बेनाम किसी के ! 

बदला मौसम खुदा का अब रास न आया  ;
लग गयी कीमत वफ़ा की क्यूँ बेदाम किसी के ! 

है वक्त - ए  - रुखसत न घबराएगा ये दिल ;
दरिया दर्द का बहता है क्यूँ बेआराम किसी के 

मिटटी की खुशबू से नावाकिफ रहना ''तनु '' ;
ये बारिश की बगावत है क्यूँ बेबान किसी के !



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