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Friday, March 20, 2015



कितना कठिन है इस ऊपरी, झूठे खोल को तोडना ;

इस छद्मवेशधारी मानव, मन के अहम को छोड़ना !
मीठा मीठा स्नेहिल झरना , जो हमारे उर बहता ;
उस झरने की प्रीत को जान , जन के प्रेम से जोड़ना !! 

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