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Sunday, September 7, 2014

विसर्जन .... 

कुरूपता क्यों ? जगत में व्याप्त है,,, भगवान के नाम पर !
नीचता पर ही पहुँच जाता नर है,,,,,, भगवान के धाम पर !!
मजबूर होकर सोचते होंगे गजानन ,,,अब न आउँगा यहाँ !
क्या क्या नहीं है कर रहा इंसा   ये,,, भगवान के नाम पर !!

अगले बरस भी देखना है क्या यह सब मुझको यहाँ ???
 बक्क्ष दे ए मानव अब कभी न आऊँ,,, मैं यहां ,,,मैं यहाँ !!! 
 छोड़ दे !!! लेकर चला तेरी बुराई और तेरे दिल का मैल ,,,,,,,
 बहा दूंगा तेरे कलुष !!! तू वहीँ का वहीँ,,, मैं वहां और तू यहाँ ,,,''तनु ''


















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