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Wednesday, September 10, 2014

 चाँद !!!
 एक बिगड़ा बच्चा ....... 
 उसने है ये खेल रचाया ,
 माँ की आँखों से ओझल हो 
 सागर के संग मेल दिखाकर 
 ज्वार भाटा दे ,.
 डराता,.....हँसाता,.
 कल्पना के रथ पर सवार हो.… 
 कवि बनाता !!!
 धरती के लोगों को ,,
 और धरा कुछ न कर पाती ,
 न रोक सकती चाँद को,
 न रोक सकती उठती गिरती लहरों को ,
 न कवि को कविता बनाने से,
 चाँद अमावस पर भी खुश !
 चाँद पूनम का भी खुश !!
 करके मनमानी !!!… ''तनु ''

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